वाह रे दुनिया वाह रे देश ऐश कर लोबदल कर वेश। कहने का कलियुग है आयाममता मोह से भरी है माया इतना बड़ा जंजाल को देखोअपने विवेक से उसे निरेखो। बिन शादी के बनते बापकौन करेगा इनको माफकानून से भी खौफ नहीं ये बढ़ते जाते करते पाप। विकट समय है देखो आया सबका सब है मन भरमायाबाबाओं जैसा हाल न करना चाहे आप जहाँ भी रहना। वाह रे मानव वाह रे राज़ कर्म से बड़ा न दूजा काज।
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बहुत खूब लिखा आपने………. शर्मा जी…..पहले पद की दूसरी पंक्ति भरा के स्थान पर भरी औऱ चौथी पंक्ति मे अपनी के स्थान पर अपने आना चाहिए…… कृपया अन्यथा न ले मुझे जो सही लगा मैंने कह दिया……..।
बहुत बहुत शुक्रिया मधु जी ध्यान से पढ़ने के लिए और हमे बताने के लिए।
बहोत बढ़िया भावयुक्त रचना ..
Sundar rachna Bindeshwar ji….
न करम पे ध्यान बा न शरम पे ध्यान बा
भोग करे खातिर अधर्म पे ध्यान बा
लूट के खसोट के धनवा बटोर के
जवानी के जोश में ऐश मौज पे ध्यान बा .
bahut sundar……………
very nice Bindu ji…………………….!