जब सॉंस-सॉंस पर हो भारी,हो ऑंखों पर पट्टी कारी,जब शब्दों पर सर कटने लगे,और बातों पर शव बिछने लगे,क्या तब भी तुम न बोलोगेऔर सत्य से ऑंखें मींचोगे…जब ‘कल्पना’ को ‘घटना’ और ‘स्वार्थ’ को ‘सच’ बनाकर परोसा जाएगा,हम यूँ ही बँटते-कटते जाएँगे,दाभोलकर, पानसारे सियासत की बली चढ़ते जाएँगे..जब हर निर्भीक सच बोलने वाले की आवाज़ दबाई जाएगी,और मौत पर हँसने वालों को,सत्ता की शय दी जाएगी,क्या तब भी तुम न बोलोगेऔर सत्य से ऑंखें मींचोगे…तुम यूँ ही ‘दैनिक व्यस्तता’ के पर्दे के पीछे छिपकर चुपचाप तमाशा देखते रहना,और हर गौरी, कालबुर्गी की हत्या पर,ट्विटर और फेसबुक पर ‘दुख’ व्यक्त करते रहना,जब तुम ख़ुद पीड़ित होके छटपटाओगेऔर धंसते जाओगे इस राजनैतिक दलदल में,क्या तब भी तुम न बोलोगेऔर सत्य से ऑंखें मींचोगे…
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Bahut sunder………………………..
Thanks
वर्तमान परिपेक्ष्य पर उचित चिंतन …………….अति सुंदर !
Thanks
अच्छी रचना।
धन्यवाद
बहुत खूब लिखा आपने…………………….
धन्यवाद
Sundar rachna
धन्यवाद
बहुत ही बढ़िया……सच न बोल पाने की घुटन और कुंठा और जो बोल सकते नहीं बोते स्वार्थ में….उन पर प्रहार….कटाक्ष….
Thank you sir