शाम बढ़ती जा रही थीबेचैनी उमड़ती जा रही थीशाख पर बैठी अकेलीदूर नजरों को फिरातीकुछ नजर आता नहीँफिर भी फिरातीचीं चीं करती मीत को अपने बुलातीपंख अपने फड़फड़ातीबाट में वो प्रीत कीफिर सोचती कि आज कैसे देर कर दीआने उनको दो भला फिर देखती हूँमै बताती हूँ उन्हें तो फिर क्षितिज से एक चंचल सी आवाज़ आतीचिड़िया उसके सुर में अपनासुर मिलातीचीं चीं गाती-रणदीप चौधरी ‘भरतपुरिया’
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sundar………
धन्यवाद जी💐💐
khoobsoorat…………..
बहुत बहुत आभार शर्मा जी💐💐
Prakriti me koi hi binaa saathi or prem ke adhooraa hai. Ati sundar …….
बहुत बहुत आभार शिशिर सर 💐💐
bhut achhe……….
धन्यवाद मधु मैम💐💐
Bahut khub…………………
आभार विजय जी💐
Very Nice………………………
आभार निवातिया सर 💐💐