सुर ताल में चली जाए जिन्दगीलय मगर आना शेष हैदरिया है आग का जिन्दगीपार मगर जाना शेष हैरग रग में है ”राधा” कृष्ण केगोपी का निश्छल प्रेम शेष हैदेता कोई अनुपम आनन्दमगर परमानन्द अभी शेष हैवीणा सा झंकृत हुआ है मनराग मगर कोई बजना शेष है रामगोपाल सांखला ”गोपी”
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Ati sundar . Poorntaa ki talaash khatm ho jaae to jeevan hi khatm ho jaae.
आदरणीय मधुकर जी,
आपकी सुन्दईर प्रतिक्रिया के लिए साधुवाद
Bahut sundar….
Annu Ji
आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए साधुवाद
Ati sundar
aapka bahut bahut aabhaar
ati sundar……………..
साधुवाद
अति उत्तम सृजन ………गोपी जी …………जहां शेष का अंत है वही से परमानंद का आरम्भ है ………..बहुत खूबसूरत !!
निवातिया जी
आपकी इस प्रकार की प्रतिक्रिया ही लिखने के लिए प्रेरित करती है।
Bahut sunder…………………
साधुवाद
बहुत गजब गोपी जी……………..
Respected Madhu Ji
आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए साधुवाद
Respected Madhu Ji
आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए साधुवाद