ब्रज की गलियों का देखो ये नजारारंग लगाने राधा को आया कृष्ण प्यारादेखो राधा को सखियों संग खड़ी हैरंग लगाने की मस्ती इसको चढ़ी हैदेख राधा प्यारी तेरा कान्हा है आयासाथ मे तो देखो ग्वालों को भी है लायातिरछी नजर उसकी ढूंढे है किसकोदेख रंग लगाने आया है राधा तुझकोदेख कर के कान्हा को राधा चहक गयीआज तो ब्रज की हर एक गली महक गयीदेखो राधा को तो कैसे इतरा रही हैकाहे कान्हा को तू इतंजार करा रही हैतब अचानक कान्हा राधा को देखतेएकटक वो देखे पलक तक न झपकतेमंद मंद गति से दोनों पास आयेकान्हा अपनी राधा को देख के मुस्कायेकान्हा तुम क्यों मेरी गली में हो आयेदेखो सखियों इसको बचके न जाने पाएजान पर खेल के तुम यहाँ हो आयेकोई भी गोपी न तुमसे रंग लगवाएओ मेरी राधा तू है बहुत ही भोलीजाऊँगा मैं न खेले बिना तुझसे होलीआज तो जी भर के रंग लगाऊँगातेरे गोरे रंग पे मैं श्याम रंग चढ़ाऊँगादेखो अपना कान्हा राधा के पीछे भागेगोपियाँ संग ग्वाले भी देख हाँसन लागेहाथ भरे है दोनों के रंग गुलाल सेराधा लगवाए रंग अपने नंदलाल सेओ मेरे कान्हा तू सुन ले बात मेरीदिल मेरा भी मचला है देख प्रीत तेरीओ मेरे कान्हा तू एक एहसान कर देदिल मेरा है खाली खाली जगह को भर दे कवि – मनुराज वार्ष्णेय
Behad sundar holi rachnaa ………
bhut khoob…………………
ati sundar……………..