स्पर्शआईना हैअंतर्मन काप्यार, घृणा काअपने होने न होने काज़िन्दगी में जीवन बाकी हैमौत अभी जीती नहीं है हमसेआह्वान है संभलने संभालने का\/स्पर्शमाँ काबच्चे कोप्राण संचारआभास जीवन कासृष्टि साकार होने काआरंभ है एक नए युग काआह्वान है संभलने संभालने का
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चलोमेरे संगउस जहां मेंज़िंदा जहां ज़िन्दगीगुनगुनाती है ज़िन्दगीहाथों में हाथ हर किसी काजात पात धर्म से ऊपर उठकरविसर्जन मेरे तेरे का करती ज़िन्दगीचलो मेरे संग उस जहां ज़िन्दगी ज़िंदा यहाँ
II सी.एम्. शर्मा (बब्बू) II
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बहुत ख़ूब ,,,,,,,,,,
तहदिल आभार आपका……Kiranji….
Bahut sundar…
तहदिल आभार आपका……Anuji….
khoobsurat bhav se sji rachana apki ……….sir…..
तहदिल आभार आपका……Madhuji…..
हिमालय श्रंखला…………………..बहुत सुंदर………………
तहदिल आभार आपका……Vijayji….
behtreen. bas teesre me jinda yahan jindahi ke sthan par yadi jinda jahan jindagi ho to kaisaa rahegaa. yahi suggestion last line ke lie bhi .
तहदिल आभार आपका……Madhukarji….sahi kahte hain aap….
उम्दा कौशल का परिचय ……….प्रचलित वर्ण पिरामिड विधा का …….शब्द पिरामिड में अच्छा प्रयोग ..अभी बहुत कम प्रचलन में है ……..लेकिन प्रयोग से ही बढ़ावा मिलता है …………….आपके शब्दों में “जय हो” …हाहाहाहाहा … !!.
तहदिल आभार आपका……Nivatiyaji….
bahut hi khubsurat bhav hai babbu ji
तहदिल आभार आपका……Rajeevji….
बहुत खूब ………., अति सुन्दर भाव ……….
तहदिल आभार आपका……Meenaji….