मुहब्बत के मैंने जीवन में जो भी खेल खेले हैंहार हिस्से में आई है और अब फिर से अकेले हैंदर्द सहने की शक्ति जब किसी की बढ़ती जाती है समझ लो ऐसे इंसा ने तीर निज दिल पे झेले हैं जानते हैं वो भी ये राज़ इश्क़ में कुछ न मिलता है गगरिया प्रेम की गैरों पे मगर फिर भी उड़ेले हैंज़िन्दगी बीत जाती है सज़ा पूरी ना होती है जुर्म ए उल्फ़त में आशिक को यहाँ मिलती वो जेलें हैंकभी रहते नहीं आबाद मधुकर एक जगह पर जोमुहब्बत स्वार्थ भरे जीवन के बस कुछ ऐसे मेले हैंशिशिर मधुकर
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bahut hi sunder sir
धन्यवाद नवल…….
ati sundar………..
धन्यवाद बब्बू जी…..
बहुत गजब……………….
तहे दिल से शुक्रिया मधु जी….
बहुत खूबसूरत शिशिर जी ……………!!
हार्दिक आभार निवतिया जी…
Shishir Sahab apne badi khubsurti ke sath sachchai ko jo pesh kiya hai vo kabile tarif hai .
तहे दिल से शुक्रिया राजीवजी
अप्रतिम मधुकर जी
तहे दिल से शुक्रिया विक्रम…
Bahut hi sundar, Shishir ji…
Dhanyavaad Anu. Maine rachnaa me singing ki drashti se kuch change kiyaa hai. Is version par bhi apne raay rakhnaa.
बहुत ही सुंदर.
Tahe dil se shukriya Vijay …………….
अति सुन्दर ………….,
Haardik aabhaar Meena ji …… .