तुम्हारी मन की बात परप्रश्न सारे उठाकर रख दो ताक पर,जिसे जबाब देना हैउसकी औकात नहीं जबाब देने की,पथ केवल एक ही शेषठान लो मन मेंबाँध लो मुठ्ठियाँनिकल पड़ो,ख़ाक में उसे मिलानेजो चुप रहता है हर बवाल परउसकी कोई औकात नहींप्रश्न उठाने कीहमारे इस जबाब पर,अच्छी नहीं हिंसाआस्था के सवाल पर,सुनते सुनते कान पाक गयेबहरे से कौन पूछेगा यह सवालफिर क्यों चुप रहते हो हर बवाल पर?क्या पहचानते नहीं तुमउन मवालियों कोजो फैलाते हैं हिंसा है सवाल पर?न्यायालय फैसले करते हैंसजा देते हैं या बरी कर देते हैंयह सवालकभी सत्ता तंत्र से मुक्त न रहापर, मिटता नहीं वह दागजो लग जाता है माथे परएक बार तिलक बनकरस्वयं को निहारो कभी खड़े होकरदर्पण के सामनेतुम्हें दिख जायेंगेहजारों मासूम चेहरे तुम्हारे पीछेकरते ढेरो सवालतुम्हारी मन की बात पर,अरुण कान्त शुक्ला28/08/2017
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Arun ji ye haal to aaj ke samaaj me har raajnaitik vyakti kaa hai fir ek se hi itni naaraazgi kyon.
सुंदर आत्म चिंतन ……….आज के दौर में ये सब प्रक्रिया राजनीति का एक हिस्सा बन गयी जिससे कोई भी दल अछूता नहीं है कहावत प्रचलित है की “लंका में सब बावन गज के” है कोई “दूध का धुला नहीं” है !!
आमजन के लिए यह दुखद घटना होती है क्योकि …इसमें जान माल की जो हानि होती है उसकी कीमत जनता को ही चुकानी होती है ………..राजनितिक दल अथवा व्यक्ति के लिए यह एक मोहरा है, जिसका पूर्णतया सोच-समझकर प्रयोग किया जाता है ! ……….मगर अफ़सोस अंधी भक्ति का ऐसा चलन चला है की जो जिसका मुरीद हो गया उसे उसमे कोई दोष नज़र नहीं आता….जो स्वाभाविक भी है ………….कारणवश जो प्रश्न खड़ा करेगा वो कटघरे में लाया जाएगा………विषय गंभीर है अपितु …व्यक्तिगत आत्मचिंतन भी तब तक कारगर नहीं है जब तक विचारो में समरूपता के साथ एक दूसरे के विचारो को समझने कर प्रयास न किया जाये !
समसामयिक विषय पर अच्छी रचना. इसी विषय पर लिखी मेरी रचना “समर्पण” पढ़े.
bhut khoobsurat kavita apki………….
bahut khoobsoorat……………..