Homeअज्ञेयजितनी स्फीति इयत्ता मेरी झलकाती है / अज्ञेय जितनी स्फीति इयत्ता मेरी झलकाती है / अज्ञेय अनिल जनविजय अज्ञेय 13/02/2012 No Comments जितनी स्फीति इयत्ता मेरी झलकाती है उतना ही मैं प्रेत हूँ । जितना रूपाकार-सारमय दिख रहा हूँ रेत हूँ । फोड़-फोड़ कर जितने को तेरी प्रतिभा मेरे अनजाने, अनपहचाने अपने ही मनमाने अंकुर उपजाती है- बस, उतना मैं खेत हूँ । Tweet Pin It Related Posts युद्ध-विराम हेमन्त का गीत उषा-दर्शन About The Author अनिल जनविजय कविता का पाठक हूँ और दूसरी भाषाओं की कविता का अनुवाद करता हूँ। Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.