आँसुओं में लिपटकर के निकल जाऊंगा आँखों सेअपनी आँख का मुझको वो काजल समझती हो,आता है गरजना सिर्फ बरसना याद नहीं जिसकोबेवजह जो करता शोर है वो बादल समझती हो,मुझे एहसास है तुमको भी मुझसे प्यार बहुत हैतुमसे मिलने को दिल मेरा भी बेकरार बहुत है….है तुम्हें प्यार गर मुझसे तो तुम भी ये जान लोमैं भी आशिक़ तुम्हारा हूँ मुझे पागल समझती हो।
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अजयजी….नज़्म खूसबूरत भाव लिए है…पर तालमेल नहीं….यह पंक्ति “अपनी आँख का मुझको वो काजल समझती हो,” मुझे लगता ऐसे होनी चाहये…”अपनी आँख का गर मुझको वो काजल समझती है”…. ये
“मुझे एहसास है तुमको भी मुझसे प्यार बहुत है
तुमसे मिलने को दिल मेरा भी बेकरार बहुत है….
नज़्म के मूड के हिसाब से मेल नहीं खाता… और ये पंक्ति भी कम्पलीट नहीं लगती “मैं भी आशिक़ तुम्हारा हूँ मुझे पागल समझती हो”
शुक्रिया सर आपकी प्रतिक्रिया पर अवश्य विचार करूँगा।
bhut hi sundar rachana ajay ji……………
धन्यवाद मधु जी।
अति सुंदर अजय ………………बब्बू जी की विचारो अपर गौर करे !
बहुत बहुत धन्यवाद सर।
हेहद खूबसूरत ………,
शुक्रिया मीना जी।
Nice expression of sentiments……
आपका बहुत बहुत आभार सर।
बहुत सुंदर रचना.