खुशी ढूढने निकला हूँ पर मन मेरा क्यों उदास हैचैन नही मिलता क्यों मुझको बस बेचैनी ही पास हैक्यों दुखी आज मैं हूँ इतना क्यों मन मे इतने सवाल हैआँख बंद जो करता तो क्यों दिखते इतने ववाल हैहै प्यार दूर मुझसे तो क्यासमझू यही वजह कुछ खास हैगर ऐसा है कुछ मेरे साथतो उस पल की मुझको तलाश हैप्रिय मिलन की मुझको आश हैप्रिय मिलन की मुझको आश है कवि- मनुराज वार्ष्णेय
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manuji…shuru jaise huee rachna….ant mein aake bikhar gayee…lay se…..
धन्यवाद babucm जी ……
महोदय, सुर लय ताल ही सब कुछ नही होता । आप रचना का भाव भी देखिए ।
bhut achhi kavita………………. manuraj ji….
उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद madhu जी…..
अति सुंदर ………..मनुराज ह्रदय के भावो की सुंदर अभिव्यक्ति …………..रचना पूर्णतय प्रेम में डूबी है , प्रेम के सभी भाव चिंता, बैचनी, सवालात, वियोग, आशा समाहित है इन सब के मध्य बवाल शब्द उचित नहीं लगता !!
बहुत सुंदर रचना.