बोलें मुझसे सखियों मोरी तू है बड़ा चितचोर हर रंग तेरा है निराला करे मन को अति विभोरदिखाता सपने कैसे कैसे नाचे मन जैसे कोई मोर दर पे तेरे जो आ गया तू मन में उसके समा गया है जादूगरी कैसी ये कान्हा हर रंग तेरा उसे भा गया प्रीत तेरी बड़ी निराली धन्य हुआ जो चरणों में आया चरण रज जो पाई तेरी न मोह माया से फिर भरमाया बताने को जग की रीत तरह २ से हमें उलझाया बुला फिर शरण में अपनी सारी उलझनों को सुलझाया तेरी माया तू ही जाने कैसा कैसा खेल रचाया लीलाएँ तेरी कोई कैसे जाने कैसा कैसा भेष बनाया गोपियों के संग रास रचाया हर गोपी का मन भरमाया चितवन तेरी एैसी निरालीमन में सबके तू है समाया है तू चितचोर जाने जग सारा पर किसी ने तेरा भेद न पाया
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मनमोहक …..मंतर्मुग्ध करती…..अत्यंत सुन्दर……..
सराहना के लिए बहुत २ धन्यावाद बब्बू जी
Very nice…
अनु जी धन्यावाद
बेहद खूबसूरत………….
काजल जी धन्यावाद
Mantrmugdh karate bhav …………, Bahut sundar ………….,
मीना जी कविता आपको पसंद आई जान कर अच्छा लगा , धन्यावाद
very nice ……………………..!!
निवातियॉ जी धन्यावाद