मैं आज बहुत डर रहा हूँ यादों को दोहरा रहा हूँ दिल को समझा रहा हूँक्या है मेरे डर का राज ये आपको बता रहा हूँ मैं आज बहुत डर रहा हूँसमझ नही मैं उसको पाया उसकी हरकतें डरा रही है मेरे दिल को रुला रही है मेरी तड़पन बड़ा रही हैसहज बैठा हूँ अपने दिल को आँखों को भिगो रहा हूँमैं आज बहुत डर रहा हूँदूरी का एहसास हो रहा मेरा अब आपा भी खो रहामोटी हो गयी है ये आँखें पलकों पर चिंता का बोझ ढो रहासर्द पवन की हुज्जत्तों से दिन रात विकट कराह रहा हूँमैं आज बहुत डर रहा हूँकवि - मनुराज वार्ष्णेय
bhut sundar rachana apki………… jigyasa purn ….
दोहे….मेरी नई रचना भी पढ़िए…….
आपका बहुत बहुत आभार मधु जी
सुंदर रचना बहुत प्यारी
धन्यवाद bindeshwar ji…..
सुंदर…… आप औरों की रचनाएं पढ़ कर अपने विचार सांझा करिये
सुझाव के लिए बहुत बहुत धन्यवाद babucm ji …..