(1)सारी दोपहर यूं ही खर्च कर दीकुछ लिखकर काटते हुए ।सोचों में डूबा मन बिलकुल खाली था । (2)गाँव दिन भर चादर तान के सोया थासांझ ढले घरों में उठते धुएँ से सुगबुगाहट हुई है । भोर होते ही वह फिर सो जाएगा। ××××××कोशिश की है कुछ नया करने की . कभी पढ़ी थी गुलजार साहब की लिखी त्रिवेणी ….,लगा बात कहने का हुनर शायद ही जुट पाए लेकिन शर्मा जी की लिखी त्रिवेणी और उनकी व्याख्या पढ़ कर लगा कोशिश कर के देखूं . सुझाव सादर आमन्त्रित हैं .“मीना भारद्वाज”
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bhut khoob meena ji……triveni ki samjh to mujhe nhi par in panktiyome bhav gajab hai….
आपकी हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार मधुजी .
Behad khoobsoorat. Doosre triveni to gudhta samete hai…….
बहुत बहुत धन्यवाद शिशिर जी .
Bahut sundar…
Thank you Anu ji .
रचना पढ़ी तो मन बेचैन हो उठा
कलम खुद ही चलते गए
विचार अपनी भड़ास निकालने को आतुर थे.
प्रतिक्रिया में एक ओर सृजन ……., .
मीना जी….. त्रिवेणी के बारे में ज्यादा तो नहीं जानती मैं
मगर हर शब्द आपके……… लाजवाब…..
बहुत बहुत धन्यवाद काजल जी .
इस खामोशी की गूंज बहुत दूर तक जाएगी……..अति सुंदर……
यहाँ आप गुरू हैं अत: श्रेय आप को ही जाता है .
बेहतरीन रचना मैम………… सारे शब्द कम हैं इस रचना की तारीफ के लिए……..