शीर्षक–“दूसरी निर्भया”ये सच हैमेरी कोई सगी बहन नहींसालो से सुनी है मेरी कलाईहर राखी मेरी आँखों में होते हैं आंसूपर नहीं होती कहने वाली भाईमैं सोचता हूँरिश्ते धागे के मोहताज़ नहीं होतेवो तो दिल से होते हैंक्या हुआ जो मेरी सगी बहन नहींपर कुछ बहने और भी तो हैंडरी सहमी सी सडको पे जाते हुएजिसे अँधेरे से डर नहीं लगताउन्हें डर लगता है बस अपने होने सेखुद के वजूद को बचाने सेक्यों डरेगी वोअकेले कॉलेज जाने सेगोलगप्पे खाने सेक्यों डरेगी वोमुश्कुराने सेवो तो फूल हैहमारे बगीचे कातो क्यों रोके हम उन्हेंखिलने-खिलखिलाने सेमैंने तो सोच लियाक्या हुआ जो मेरी अपनी बहन नहींये भी तो कुछ कम नहींमैं दूंगा इन्हें पंख उड़ने कोमैं दूंगा अपनी कलाईराखी सजाने कोमैंने तो सोच लियाचलूँगा उसका साया बनकरधुप में उसकी छतरी बनकरवो जिए अपनी ज़िन्दगीउसकी निगाहेबान हैउसकी भाई की आँखेमैंने तो सोच लियाआप भी विचार कीजियेबढाइये कलाईताकि ना छुटे किसी बहन की रुलाईताकि ना बन सके कोई औरदूसरी निर्भया——-अभिषेक राजहंस
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बहुत सुन्दर भावनाएं हैं……अतयंत सुन्दर सन्देश……………
सुंदर कृति भाई बहन का प्यार
Bhahut sundar bhav…nice message too…
Dhanyawad mam
Nice Bhaiya
Thanks bro
Sunder bhavon me rachit.
kitna sundar bhav hai apki is rachana me……….har bhai esa hi ho …….
Thanks mam
बहुत ही सुंदर…….. बेहतरीन भाव…..
आपके जैसे भाई की जरूरत सभी को है…….
Thanks