गुजर गया अब के ये सावन बिना कोई बरसात हुए सब शिकवे हमने कह डाले बिन तेरी मेरी बात हुए प्यार लुटा के बैरी होना सबके बस की बात नहीं दिल की हालत वो ही जाने जिस पे ये आघात हुए मुझे शिकायत है उस रब से जिसने तुमको भेज दिया प्यासे को नदिया जल जैसे तुम भी मेरी सौगात हुए हाथ पकड़ के फिर ना छोड़ा ताकि तुम आबाद रहो ये मत समझो मुझपे कोई तुम से कम प्रतिघात हुए सबका अपना किस्सा है और सबकी अपनी मज़बूरी बेरहम ज़माना क्या जाने चोटिल कितने जज़्बात हुए नया सवेरा उजली किरण ले फिर से आएगा मधुकर तीन पहर हो गए हैं पूरे अब तो काली अँधेरी रात हुए शिशिर मधुकर
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Bahut sundar rachna…Shishir ji…
Tahe dil se shukriya Anu ……….
हृदय स्पर्शी सुंदर रचना। पढ़कर ही हृदय प्रेम से भर आया । सादर धन्यवाद मधुकर जी ।
Tahe dil se shukriya Devendra. Aapke shabd anmol hain.
bhut sundar rachana………………..
Bahut bahut dhanyavaad Madhu ji ……..
बेहद खूबसूरत………..
Tahe dil se shukriya Babbu ji ………
Behad khubasurat …….., Marmsprshi ……..,,
Tahe dil se shukriya Meena ji……
सावन में गजल की बहार है
बारिस में रूठा हुआ मेरा यार है
मनाने की कोशिशें बेजा गयीं
आज तो रक्षा बंधन का त्यौहार है.
Bahut sunder.
Bhai waah Vijay……Aaapki kaavyaatmak pratikriya bhi laajavaab hai …….
बहुत ही खूबसूरत……….. लाजवाब रचना….. मधुकर जी
Tahe dil se shukriya Kajal…..