Homeठाकुरवा निरमोहिनि रूप की रासि न ऊपर के मन आनति ह्वै है वा निरमोहिनि रूप की रासि न ऊपर के मन आनति ह्वै है विनय कुमार ठाकुर 27/03/2012 No Comments वा निरमोहिनि रूप की रासि न ऊपर के मन आनति ह्वै है । बारहि बार बिलोकि घरी घरी सूरति तो पहिचानति ह्वै है । ठाकुर या मन की परतीति है जा पै सनेह न मानति ह्वै है । आवत हैँ नित मेरे लिये ईतनो तो विशेषहि जानति ह्वै है ॥ Tweet Pin It Related Posts वह कंज सो कोमल ठाढ़ी रहो, डगो न भगो जौँ लौँ कोऊ पारखी सोँ होन नहिँ पाई भेँट About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.