फिजाओं में शोर बहुत हैमौन की चादर अपने वजूद से लपेट मन किसी कोने में गहरी नीन्द में सो रहा है कस कर शरीर की खूटियों सेबाँधा है ऐसे कि किसी हवा के झौके सेनींद में कहीं खलल ना पड़ जाएखलल पड़ेगा भी कैसे…?दिमाग ने वरदान जो दे रखा हैकुम्भकर्ण की तरह सोने का .xxxxx”मीना भारद्वाज”
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वाह…..नायाब…..अप्रतिम…..क्या मौन को परिभाषित किया है….सच ही तो है…अगर ज़िद्द है कुछ करने की तो कर ही लेता है मन…चाहे जितना मर्जी शोर हो…तूफ़ान हो…चुप्पी साध ली तो साध ली…
शर्मा जी हार्दिक आभार . आपकी उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया अच्छा लिखने को प्रेरित करती है .
इस मतलबी दुनिया में कुम्भकरण सी नींद में सोना ही इस मन की वो मजबूरी है जिसके सहारे सब जिंदगी को चलाते है. जहाँ आंतरिक खुशी हो वहाँ संगीत स्वयं उत्पन्न होता है. बेहतरीन रचना. अगर मैं सही विवेचन कर पाया.
शिशिर जी बहुत बहुत आभार आपकी उर्जावान व विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया हेतु .
गूढ़ चिंतन के माध्यम से सजगता का भाव उत्पान कराती सुंदर रचनात्मकता ……………अति सुंदर मीना जी
आपकी उर्जावान व प्रोत्साहनवर्धित करती प्रतिक्रिया हेतु अत्यन्त आभार निवातिया जी .
Bahut sundar…
बहुत बहुत धन्यवाद अनु जी .
बहुत प्यारी रचना सुंदर कथन…. मीना जी
रचना सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद बिन्दु जी .
bahut sunder rachna meena ji….
मनी जी ! बहुत बहुत आभार . आपकी रचनाओं और प्रतिक्रियाओं की सदैव प्रतिक्षा रहती है .
Very nice Meena JI
Thank you very much Kiran ji .
bhut sundar vyang rachana apki……………..
Thank you so much Madhu ji .
Bahut hi sunder…………………..
Bahut bahut dhanywaad Vijay ji .
लाजवाब……………. मीना जी……
धन्यवाद काजल जी .बहुत दिनों से आपकी रचना नही पढ़ी .आप बहुत अच्छा लिखतीहैं .