दीवाना मैं हूं कौन है दीवानी बताओ मुझेलिख रहा हूं किसकी कहानी बताओ मुझेबहोत तेज़ बज रहे हैं घुंघरू तवायफों केबर्बाद हुई है किसकी जवानी बताओ मुझेथक गए क्या काट के परिंदों के परों कोक्यूं उतरा है शमशीर का पानी बताओ मुझेमर्द ने औरत ने या किसी शैतान ने रौंदा हैकिसने उधेड़ी है जिंदगानी बताओ मुझेकभी देखा नहीं महफ़िल को इतना रौशनआज कौन है रात की रानी बताओ मुझेकोई बना है हिन्दू कोई मुसलमां बना बैठाकहां लगी है मज़हबी निशानी बताओ मुझेशोहदे बने फिरते हो जो बेटी की उमर पेहै किसी की आंख में पानी बताओ मुझे।
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bhut hi sundar rachana apki………………..
Aapka bahot bahot shukriya
आशीषजी….गुस्ताखी माफ़…..मुझे रचना में तारतम्य नहीं लगता….पहली पंक्ति और दूसरी पंक्ति में….
Aapki pratikriya ke liye aabhar Babu ji
Ghazal me Sher aapas me jude nahi hote hain.. har sher ek alag matlab rakh sakta hai
आप बिलकुल सही कहते हैं की हर शेर अलग हो सकता है…..पर शेर के दोनों मिसरे तो एक दुसरे के पूरक होने चाहये मतलब मेरा ये है….
बहोत तेज़ बज रहे हैं घुंघरू तवायफों के
बर्बाद हुई है किसकी जवानी बताओ मुझे
तवायफों के घुँघरू बज रहे हैं…इसका जवानी से क्या लेना…और फिर किस की जवानी…तवायफ की या की जो वहां आया उसकी…
मर्द ने औरत ने या किसी शैतान ने रौंदा है
किसने उधेड़ी है जिंदगानी बताओ मुझे
ज़िन्दगी उधेड़ी जाती है…ज़िंदगानी मेरे हिसाब से नहीं….
कभी देखा नहीं महफ़िल को इतना रौशन
आज कौन है रात की रानी बताओ मुझे
रात की रानी खुशबू देती है…रौशनी नहीं……. रौशन की जगह खुशनुमा…महकती…नशीली…महफ़िल होती तो शायद ज्यादा उपयुक्त होता….
थक गए क्या काट के परिंदों के परों को
क्यूं उतरा है शमशीर का पानी बताओ मुझे
क्या कहना चाहते आप इसमें…की परिंदों के पर और काटने चाहये ? मिसरा ‘थक गए’ से शुरू होता है….
कोई बना है हिन्दू कोई मुसलमां बना बैठा
कहां लगी है मज़हबी निशानी बताओ मुझे
दुसरे मिसरे में अगर होता की खुदा न कहाँ लगाई है मजहबी निशानी बताओ मुझे तो ज्यादा अच्छा होता….स्पष्ट होता…
शोहदे बने फिरते हो जो बेटी की उमर पे
है किसी की आंख में पानी बताओ मुझे।
आप एक व्यक्तिगत बात कर रहे हो पर्टिक्यूलरली “शोहदे बने फिरते हो” एकवचन…अगर बहुवचन भी लिया है तो अगला मिसरा उसको पूरा नहीं कर रहा….वो पहले को ही ब्यान कर रहा…पानी आँख में नहीं है तभी तो हरकत की उसने….एक ही बात…लेकिन उसका असर क्या…रिजल्ट?….
Babu ji
Sher ka kahan hi aisa hota hai ki hindi kavita ki tarah har takhayyul ko puri tarah saaf nahi kiya jata, ek hi sher ke alag alag ke logo ke liye kai alag maani ho sakte hain.
Main manta hu ke aapka kahna apni jagah sahi ho sakta hai par is tarah se aap kisi bhi ghazal aur sher me kuchh bhi nikaal sakte hain, kyo ki agar dekhne jayege to purane urdu ke shayar aise sher kah gaye hain jo aaj tak samajh me nahi aaye kisi ko ya dheere dheere aa rahe hain
आशीष जी… आपको बब्बू जी ने बहुत अच्छे ढंग से शेर और उनके बनते मिसरे के बारे में बताया… शेर मुकम्मल तब होती है, जब उनके सही अर्थ निकलकर बाहर आती है… थोडी कोशिश की बात है.. बुरा न माने