भटकती हुई जो नई पीढ़ी हैजिस तरह तेजी से दुनियां आगे बढ़ती जा रही हैजिस तरह तेजी से नई पीढ़ी, बदलती जा रही है।जिस तरहनई पीढ़ी में स्मार्टफोन से चिपके रहने की आदत बन चुकी हैनई पीढी में, पश्चिमी सभ्यता की नक़ल करने की प्रवृत्ति बन चुकी है।जिस तरहपार्कों में, कालेज के गेट्स पर, पिकनिक स्पॉट परनौजवान लड़के-लड़कियां, हाथों में हाथ डाले दिख रहे हैंआँखों का पानी गिर चुका है, बेहयाई की हदें पार करते नज़र आ रहे हैं।जिस तरहपरिवार में ही अब संवादहीनता की स्थिति बन रही हैनौजवान बड़ों के प्रति, लापरवाह व बिंदास हो रहे हैंबूढ़े दादा-दादी के साये, पोते-पोतियों से दूर होते जा रहे हैं।बंधुओं, अब गंभीरता से विचार करने का वक्त आ चुका हैअब नए सिरे से संभलने-संभालने का वक्त आ चुका है।कुदरती तौर पर जहाँ हम हैं आज, उससे बहुत दूर न हो जाएंअकल्पनीय अवस्था में, पहुंचने में ज़्यादा देर न हो,अब ऐक्शन में आ जाएं।भटकती हुई जो नई पीढ़ी है, उसे अब टोकना होगादुनियां की दौड़ में वह खो न जाए अब रोकना होगा।र.अ. bsnl
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भाई रकीम अली. आपकी रचना के कुछ पहलू सही प्रतीत होते हैं। लेकिन ये हम पुरानी पीड़ी का जड़त्व भी हो सकता है जो हर बदलाव को अपनी दृष्टि से देखता है. जब भी कभी कोई बदलाव आता है तो पुराने लोगों की वास्तविक जिम्मेदारी नई पीड़ी को हर पुरानी परम्परा के पीछे की लॉजिक बताने की है. यदि वो आज के दौर में फिट बैठे तो ठीक वरना उसे त्याग नए ज़माने के साथ चलना ही उत्तम है. मुझे इस बदलाव से ज्यादा चिंता इस बात की होती है की कैसे आज भी हमारा युवा धर्म, जाति, सम्प्रदाय व क्षेत्र इत्यादि के आधार पर कितनी आसानी से बरगलाया जा सकता है.
sahi kaha appne raquimali ji…
………….
वर्तमान परिपेक्ष्य में विकास के साथ बढ़ती कुछ विषमताएं तो व्यक्तिगत रूप में सभी को प्रभावित करती है और हानिकारक भी है जैसे की आपने रचना में उद्धत किया है की स्मार्टफोन से चिपके रहने की आदत, , बेहयाई की हदें पार करना, परिवार में संवादहीनता, आदि अहम् मुद्दे है जिन पर आपका आकलन एकदम उचित है, इस पर आपका यह तर्क की अब उन्हें टोकना होगा, दुनियां की दौड़ में वह खो न जाए अब रोकना होगा पूर्णतया सही है !
शिशिर जी के इस कथन में कोई दो राय नहीं है की कैसे आज भी हमारा युवा धर्म, जाति, सम्प्रदाय व क्षेत्र इत्यादि के आधार पर कितनी आसानी से बरगलाया जा सकता है.!!
मधुकर जी, मधु जी और निवातिया जी
आप लोगों का बहुत-बहुत धन्यवाद।
मधुकर जी और निवातिया जी
आप लोगों के विचार से मैं भी
पूर्णतः सहमत हूँ तथा
विचार-विमर्श के लिए सादर आभार
प्रकट करता हूँ।
हमारी पुरानी परंपरा, हमारी संस्कृति और
विचार
चार धारा मटिया मेट होते नज़र आ रहे हैं. हमारी सभ्यता हमसे पीछे छूटती चली जा रही है. हमें संभालने और संभलने की जरूरत है. बहुत सुन्दर काव्य रचना.. अली जी…
bilkul sahi kaha aapne……..par younger generation aaj kal sunti bahut kam hai….jawaab jyaada uske paas….
BP Sharma ji aur Babbu ji, thanks a lot.
For both,
विचार-विमर्श के लिए सादर आभार
प्रकट करता हूँ।
बहुत खूब.
Vijay Kumar ji,
aap ka bahut Shukriya