जन्म लेने में, मेरी भूमिका कहाँ थी,न ही मेरी पसंद, न पसंद की बात थी,सबके विकास की बाते जब होती है,फिर क्यों आरक्षन का जाल ही बुना है?जब मै होती हूँ, अपने दोस्तों के बीच,कभी धर्म या जाति की,हमने परवाह ही नहीं की,फिर क्यों और कैसे यह अभी तक जीवित है?दर्द तो उधर भी है, और इधर भी,आंसू है उधर भी, और इधर भी,न ही उधर ख़ुशी है न ही इधर है,क्यों इसका परिणाम अभी तक मिला नहीं है?क्यों अबतक सबको एक जैसी ही,सुख सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी है?कही कोई गहरी साजिश तो नहीं,बांटो और राज करो का, ताबीज तो नहीं? अनु महेश्वरीचेन्नई
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बात तो सही है आपकी…..राजनीति…स्वार्थ…देश हित से ऊपर जब हो तो ऐसा ही होता है….
Thank You, Sharmaji…
इन्सानों को बाँटने की राजनीति है और कुछ नहीं
Thank You, Kiran ji…
bada sateek vyang. is desh kaa kuch nahi ho saktaa……….. aapki observation bilkul sahi hai.
Thank You, Shishir ji…
अनू जी आपने सच्चाइ को बहुत ही अच्छे से पेश किया है l
Thank You, Rajeev ji…
truly said……very nice…………..!!
Thank You, Nivatiya ji…
kitna sahi aur kitna stik kaha apne anu ji……………
Thank You, Madhu ji…
bahut gambhir soch-vichar
ka parinam hai yah, Anu ji.
Thank You, Raquimali ji…
अच्छी बात कहने की बहुत अच्छी कोशिस.. बिल्कुल सही कहा अनु जी…
Thank You, Bindeshwar ji…
बहुत सूंदर रचना.
Thank You, Vijay ji…