सूनी सूनी साँसों के सुर मेंये आँसू कब तक थिरकेंगे।कभी कहीं ये आवाज थमेगीअब जग में ना आँसू बरसेंगे। ये साँसें हैं दीप सरीखीइक जलती है, इक बुझती हैधुँआ बाती-सी जीवन ज्योतिजलती है, ना बुझती हैदिव्य ज्योति जब आँखों में हो तोआँसू मोती से ही चमकेंगेसूनी सूनी साँसों के सुर मेंये आँसू कब तक थिरकेंगे तरस रहे हैं बूँद बूँद कोपनघट पनघट खाली हैसाँसों का भंडार भरा हैजीवन गागर खाली है दरक उठी जब माटी की गागरहर आँखों से आँसू छलकेंगेसूनी सूनी साँसों के सुर मेंये आँसू कब तक थिरकेंगे जीवन घट पनघट पर देखाधूली का श्रृंगार लियेपर यह चलती माटी देखीफूलों का श्रृंगार किये टूट टूटकर यूँ साँस लड़ी सेये आँसू कब तक बिखरेंगेसूनी सूनी साँसों के सुर मेंये आँसू कब तक थिरकेंगे चलते राही चलते रहतेधूप छाँव को साथ लियेपर साँसों की गति में दिखतीथकती राहें पाँव तले यूँ साँसों का बिखराव मिटानेकब तक आँसू यूँ ही बिखरेंगेसूनी सूनी साँसों के सुर मेंये आँसू कब तक थिरकेंगे … भूपेन्द्र कुमार दवे 00000
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बहोत खूब …………….
सुंदर रचना… खूबसूरत…
अति सुन्दर सृजन ………..!
Behad khoobsoorat…..