चल-चले मिले कहीं न तेरा आश्रय न मेरा,प्रीति-गीत गाए कहीं चल-चले मिले कहीं।सच-झूठ की फिकर नहीजिस राहा पर मिला,मैं अजनबी नही,चल-चले मिले कहीं।।तेरे सपने मेरे अपनेयादों के संग चले,आ फ़िर मिले कहीं,चल-चले मिले कहीं।।। ऋषि के.सी.????????????????????????????
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सुन्दर भाव…….
आपका धन्यवाद कविवर बाबू जी ।
Prem ki abhilaashaa dikhti hai…….
सही कहा आपने श्रीमान जी.
सुंदर
आपका शुक्रिया श्रीमान महोदय ।
अच्छी रचना बहुत सुन्दर ंंंं
धन्यवाद श्रीमन जी।
अच्छा लिखते हो लिखा करो
कभी औरो को भी पढ़ा करो
जी श्रीमान जी आपका धन्यवाद .जी मैं ऐसा ही करता हूँ लेकिन मैं अभी कम वर्ष का हूँ इसलिए भाषा की उतनी समझ नही है.
Sundar rachna…
thanku mam ji
Nice poem
thanks bhai