अपने अधिकारो में फंसे हम ऐसे,सामने वाले का अधिकार भूल बैठे,किसी बात पे, शर्म नहीं आती, आज हमे,सारी बाते, लगती मौलीक अधिकार, हमे|बेमतलब की वहस में सब,हम समय गवाने लगे है अब,शक्ति अब कही खोने लगी है,शोर बस ज्यादा, होने लगा है|परिवार सिमट गया फेसबुक में,रिश्तेदार अब दूर होने लगे है,समय बिते इंटरनेट और मोबाइल पे,नज़र भी कमज़ोर होने लगी है|शिक्षा आज बनी है व्यापार,भूलने लगे है, अपने संस्कार,बन बैठा पैसो का गुलाम, इंसान,खोने लगा है, आज उसका ईमान| अनु महेश्वरीचेन्नई
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ek dam sateek …………..
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सही एवं कटु सत्य………..
Thank You, Sharma ji…
Truly Said ………….!
Thank You, Nivatiya ji…
Sach kahe
Thank You, Arun ji…
Sach kaha aapne
Thank You, Arun ji…