कोई न था माँ ,हम अकेले थे .बहुत बड़ी थी ये दुनिया ,फिर भी हम अकेले थे .कोई हाँथ मेरा पकड़ कर ,न चला ,सारे रास्तो की दूरिया ,अकेले तय करते चला ..सब हसंते थे तो ,हम भी हँसते थे ,एक तेरी हंसी के बिना ,माँ हम अकेले थे .चलते चलते रास्तो में ,बागो तक पहुंच जाते थे ,पीछे मुड़कर देखते तो ,माँ हम अकेले थे ..जीवन के पन्ने पलटते गए ,लेकिन वो पन्ने आज भी वैसे है ,जिन पन्नो पर हम अकेले थे .हर पन्ना एक नए दर्द से भरा था ,कोई दर्द बाँटने वाला नहीं था ,माँ क्यों हर पन्ने पर ,हम एकेले थे .वक्त के सभी पहर ,हमसे लड़ते रहे ,क्योकि वक्त को भी पता था ,माँ हम अकेले थे .चारो तरफ प्यार ही प्यार था,कुछ मिला कुछ न मिला ,एक तेरे प्यार के बिना ,माँ हम अकेले थे .चहल पहल की वो गालिया ,आज भी याद आती रही ,तेरे बिना माँ हर,गालिया सूनी रही .आज उसी बड़ी सी दुनिया में ,मेरी एक दुनिया है ,जिस दुनिया में हम कभी अकेले थे . हां हम कभी अकेले थे .. अंजली यादव KGMU LKO मेरे पापा के लिए ,जो कभी इस दुनिया में बिलकुल अकेले थे .
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sundar bhaavaavyakti anjali ……………….
Very nice
Bahut sundar bhav…Anjali….
bahut hi sundar….pyare bhaav….sachhe bhaav…….
Gajb yadav ji…
Lovely creation …………….!
बहुत सुन्दर लेखनी… माँ के प्यार की एक अच्छी अनुभूति…