शहर की भीड़ भाड़ से निकल करसुनसान गलियों से गुजर करएक चमकता सा भवनजहाँ से गुजरते है, अनगिनत शहर |एक प्लेटफार्म है जो हमेशा हीचलता रहता हैफिर भीवहीं है कितने वर्षो से |न जाने कितनो की मंजिल है येऔर कितने ही पहुंचे हैयहाँ से अपनी मंजिलपर हर कोई बे-खबर है |कुछ लोग दिन गुजारते है कहींफिर शाम को लौट करबिछाते है प्लेटफार्म पर एक चादरये बन जाता है, सराय |रात के अँधेरे में चमचमाताकई शहर इंतजार मेंउसी इंतजार में शामिलआज मेरा भी नाम ||
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behad khoobsoorat……aanklan………….
bahhut bahut aabhar aapka
खूबसूरत कविता
aabhar chandramohan ji……
lovely thought………………..!!
shukriya D. K. ji…
बेहद खूबसूरत… अच्छी भाव व्यक्ति…
shukriya ……………
Sundar likha aapne