Category: भावना तिवारी
क्षमा क्यूँ माँगूँ हाथ जोडूँ मन को तोडूँ केवल तुम्हारा, रखूँ मान इसलिए कि मैं स्त्री हूँ ! मैं विवश रहूँ न लूँ साँस न खोलूँ पर न देखूँ …
मेरे जीवन साथी मैं तुम्हें स्वेक्षा से नमन करती हूँ !! सकुची-सकुची आई थी घर आँगन में तुम्हारे लोगों ने बताया था यही है ससुराल उधड़ेगी की खाल उठेंगे …
बाँझ होने पाए ना यह लेखनी पीर लिख ले मीत गा ले !! गर्भिणी हो आज रह ले विरहिणी सम दर्द सह ले तोड़ कर जंजीर चुप की आतंरिक …
ख़ूब सभाएँ करो बैठ अब सासें चलना बंद हो गया .!! सत्य अपाहिज कैद जेल में , जान गई बस खेल-खेल में ! निर्बल मौन साधने से क्या उनका …