Category: तुषार गौतम ‘नगण्य’
“अरुणोदय” मुँह अँधेरे पौ फटी है, जो थी निशा वो कटी है जो था अँधेरा दूर हुआ, वो रैना सर पर से हटी है घँसलों के …
श्री हरिवंश राय बच्चन जी को मेरी और से एक छोटी सी श्रद्दांजलि , उनकी मधुशाला को थोड़ा आगे बढ़ाने का एक छोटा सा प्रयास, इक्कीसवी सदी की मधुशाला …
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वहीं तो है जो रहते है हर दम सीमा पर तन के हो प्राप्त वीरगति को खातिर वतन के दिवाली पर होली खेलते जी रण में जिनके लहू की …
झाँक ले गलेबान में………… किस बात का तुझे है गुरूर झाँक ले गलेबान में जो उड़ रहा धरती से तू ..तू “नगण्य” है आसमान में तू ही अकेला है …
हक़ीक़त जहां की …………… १ मैं अपने अपनों का गम खा रहा था भूल गया था मौत सबकी आती है २ वो मुझसे बार बार जात पूछ रहा था …
मेरी माँ …………………………. अंधेरो में तूने ही तो था दिखाया रास्ता जब रूठी ज़िंदगी थी तू थी साथ मेरी माँ इस दुनिया ने भी मुझको बेसहारा किया मेरी माँ …
तुझे खोने का दर्द तो है पर दर्द के खयालात नहीं याद आती है तू न मुझको या तेरी कोई बात नहीं मतलब तुझसे रहा नहीं अब तू कोई …
खफा खफा था वो सबसे दुःख जता कर सो गया भारत माँ के आंसू का कतरा ना जाने कहाँ खो गया धर्म धर्म पर बँट रहा है बँट रहा …
आसमां का छोर नहीं है , ना उदय ना अंत है उसका उन्मुक्त है गगन ये सारा माप भी अनंत है उसका मैं पंछी हुँ कैदी नही हुँ जंजीरो …
आँख का पानी न सूख सका तेरा मेरा ना अपना हुआ , दूर हुए है जो हम तुमसे , जो चाहा वो सपना हुआ ….. अब सपनो में केसे …
Main hu koi bag toh Tu meri bahaar hai Tu hai gul banker ke aai Zindagi gulzaar hai Main kahta h uteri raaho se Wo mujhse aakar mil jaae …