Category: राहुल झा
झुलसी शाम, स्याह रातें सहमी, दम तोरती जज्बातें ! बढ़ते भूख की दहक, बढ़ते प्यास की तड़प ! बूँद बूँद की तरस, साँसों पर न अब उसका वश ! …
जिसे समझते थे हम अपनी जिंदगी , आज पता चला वो एक गलती थी ! जिस भरोसे की ऊँगली थाम चल परे थे हम मुसाफिर बन कर, आज पता …
एक मुलाकात से डरता हूँ.. दिल की हर बात से डरता हूँ.. हर एक जज्बात से डरता हूँ.. आँखों की गुस्ताखी से डरता हूँ.. सपनो की बैचैनी से डरता …
आज सुदूर चल पड़ा है मन मेरा. जैसे सपनो में मिल गया हो एक नया बसेरा. जैसे दूर कहीं नज़र आया हो एक खुबसूरत सवेरा. जैसे छंटने वाला हो …
तेरे होठों के किसी कोने में, हंसी की तरह मैं महफूज हूँ.. तेरे आँखों के किसी कोने में, आंसू की तरह मैं महफूज हूँ.. तेरे दिल के कोने में …
ये किस डगर चल पड़ा था जिसमे, मुसाफिर भी मैं ही और हमसफ़र भी मैं ही था !! ये कैसी बिमारी थी जिसमे, चीख भरी ख़ामोशी भी मेरी थी …
आज सुदूर चल पड़ा है मन मेरा. जैसे सपनो में मिल गया हो एक नया बसेरा. जैसे दूर कहीं नज़र आया हो एक खुबसूरत सवेरा. जैसे छंटने वाला हो …