Category: पंकज पंढरी चरपे
अब अकेला नहीं तनहाई मेरे साथ होती है, आग़ोश-ए-तसव्वुर में उनसे मुलाकात होती है, सुर्ख आँखो को ढुंढती हर एक रात होती है, अब उसके रुख़सार की चमक और …
उनकी ख़ामोशी कुछ कहती है जिसका हमें पता नहीं, दिल-ए-बेताबियाँ है इतनी की कुछ समज आता नहीं, उनकी झील सी आँखो की गहराई में इस कदर डूब गए है …
खिल उठता है मन चाँद के निकलने से , मन की मयुरी है नाचती उसके कोमल प्रकाश से , चाहत इस दिल की ,कोई चाँद उतर आये इस जीवन …
कब होगा मेरे भी भीतर सत्य का अवतरण । एक एकेला राही चलता है उस मार्ग पर , आएगी एक न एक दिन वो घडी इस आशा को बांधकर …
अब डर लगता है फिर कुछ आगे सोचने से | बचपन से यही सोचता था ,की यही मेरी मंजिल है जहा मुज़े पहुचना है, मगर पहुँचते ही फिर एक …