Category: पंकज दीक्षित
कहीं मेरी उम्मीदें बेमानी तो नहीं जो सबसे चाहता हूँ मिल नहीं पाता जो तुमसे चाहता हूँ खिल नहीं पाता अक्सर लौटता हूँ नाउम्मीदी लिए कहीं इसके भी कोई …
तुम सब गुलदस्ते में लगे हुए फूल हो जिनकी पंखुरियों के झरने में छिपा होता है कहर जिनकी खुशबुओं से महकता है शहर तुम सब मस्त हवा हो जसकी …
बहुत जल्दी में हम बाज़ार से निकले बहुत जल्दी में हमने सौदाई की न रूके न देखा बस समझा किए इसने मोहब्बत नहीं की उसने दगाई की समंदर को …
गरिमा बांध दीजिये गरिमामय परिधानों से फैसलों से नीतियों से सम्मान और संस्कारों से एक अदना सा शख्स भी फिर जी पायेगा अपनी क्षमताओं को गुंजाईश नहीं रहेगी कमज़ोरियों …
महामहिम वो शख्स जो महामहिम है बड़ा है निर्णायक है सब की निगाह है जिसपर कि तटस्थ रहेगा हर परिस्थिति में हर परीक्षा में निर्णायक रहेगा उसका हर फैसला …
कल कुछ पाने के लिए बहुत खो न दें आज राह सुनहरी बढ़ रही है मंजिलें भी मिल रही हैं पर न भूलें झूठ अपना पर न भूलें सांच …
युग बदल जाएगा सोच बदल जाएगी बदल जाएँगे मेल मिलाप के तरीके हाँ हम सब बदल रहे हैं बदल जाएँगे पूरे के पूरे शब्द बदल जाएँगे भाव बदल जाएँगे …
एक उर्म के बाद सब मिलते हैं जैसे नदियों के लिए समंदर खुलते हैं छूट जाता है सब छोटा बड़े हो जाते हैं हम याद आती है सारी गलतियां …
वो मेरी उम्मीदों से निकली किरण है वो साहस है मेरे ख्वाबों को सच करने का वो मेरे टूटे पलों में जन्मी ताकत है वो ज़िंदा स्पर्श है मेरे …
सुबह सुबह सोने के कटोरे से निकलकर सोने की धूप वृक्षों को कर देती है सोना सोना आंखों में भरकर पंहुचती है अंदर रंगों में भर देती है आफताब …
बादलों के बीच दुनिया के खुबसूरत चेहरों के साथ मस्ती के शानदार साधनों का जमघट सपनों का सच कायनात की कशिश जिंदगी से हसीन लम्हों के ळम्स, मोहब्बत की …
गर्मियों के दोपहरों को सहते हुए जिंदगी की तपिश को कहते हुए खबरों के दरवाज़े से होते हुए ये दिन जिंदगी में पीड़ा के दिन हैं।
सारे के सारे आधे अधूरे कुछ तमाशाई कुछ जमूरे हम जो हाथ बांधे देखते हैं सबको हैं कितने पूरे ?