Category: मार्कण्ड दवे
दिल का मकान, तन्हाई का मारा है..! दम का कुनबा भी, बड़ा बेसहारा है..! गर, आ सको तो, बेझिझक आ जाओ, कज़ा या सांस में अभी, बँटवारा है..! मार्कण्ड …
तसव्वुर भी तार-तार सा, हो गया है इश्क में….! न जाने ये क्या से क्या, हो गया है इश्क में….! मार्कण्ड दवे । दिनांकः १९-११-२०१८.
दिल के ज़ख़्म, आईने में साफ दिखाई देते हैं…! इक बार फिर से, क्या तुझे मेरी याद आयी है ? मार्कण्ड दवे । दिनांकः १६-१२-२०१८.
हुस्नवालों के इशारे पर, समय नहीं बदलता…! हुस्नवाले समय पर, इशारे बदल देते हैं…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः १६-१२-२०१८.
दर्द, आहें, ग़म, उदासी, नाबालिग़ ले कर चला था घर से…! राह में इश्क़ मिला और सारे, अचानक जवाँ हो गए…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २२ मई २०१६.
प्यार में हर रस्म निभाई मैंने मगर , रास न आई उसे, मेरी बेहद वफ़ाई मार्कण्ड दवे । दिनांकः २४/१०/२०१८.
दिल ने उनकी आंखों पर भी, काबू पा लिया है..! दिल की हर बात आजकल, आंखें बयाँ करती है..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः- १४-१२-२०१८.
बेहिसाब चाहत की, सज़ा पा रहा हूँ..! आजकल मैं उनको, खफ़ा पा रहा हूँ..! आते थे जो हर वस्ल में ख़ुशी से, ख़्यालों में भी उनको, जुदा पा रहा …
बरसों पहले ग़म उधार लिया था, दर्द महाजन से मैंने…! आजतक सूद चूका रहा हूँ, खुशीयोँ का पेट काट के…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः १२-१२-२०१८.
बेसब्री से जब, दिल का किस्सा छेड़ दिया मैंने..! बेमुरव्वत कह के, बिना कुछ सुने, वो चल दिए..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०३-१२-२०१८.
उसने छोड़ना बेहतर समझा, मैंने जान देना…! सब के अपने-अपने, हुनर होते हैं मेरे दोस्त…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः१०-१२-२०१८.
कुछ तो बात थी मगर, वो बात-बात में गई…! तुम गए यूँ जिंदगी से, वो भी हाथ से गई..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०२-१२-२०१८.
सिर्फ मौत का ख़ौफ़ काफ़ी नहीं, मुझे ड़राने के लिए….! सामने आ, नज़रें मिला, बात कर, शायद मैं ड़र जाऊँ….! मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०५-१२-२०१८.
जीने की तमन्ना, रूठ रही है, धीरे-धीरे..! ये रूह भी तन से, ऊब रही है, धीरे-धीरे..! समझाती है सांसें उनको, जी-जान से मगर, सांसें भी तो देखो, टूट रही …
एक तमाशबीन से मैंने पूछ लिया, मेरी मौत को, तमाशा कैसे बनाऊँ..! उसने कहा, ” तू ज़िंदगी सही जी ले, मौत तमाशा क्या, त्यौहार बन जाएगी..!” मार्कण्ड दवे । …
लम्हा दर लम्हा मेरे दर्द का, ख़्याल रखता हूँ मैं…! ताउम्र हमसफर को इस तरह, खुश करता हूँ मैं…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०४-१२-२०१८.
इम्तिहान देते – देते, थक चुका हूँ इश्क में….! क्यों उठाए इतने मुश्किल, सवालात इश्क में…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०२-१२-२०१८.
मुद्दत हुई, तुम से एक बात कहनी थी, रह गई…! चलो, एतबारे-इश्क़ की, ख़ाना ख़राबी रह गई…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः ३०-११-२०१८.
हम पर इल्ज़ाम है की, हम-साया न बन सके हम कभी..! बता, कहाँ है प्यार की धूप, साये को जीने के लिए ? मार्कण्ड दवे । दिनांकः ३०-११-२०१८.
क्यों लिखूं, क्यों कर लिखूं, किस के लिए लिखुं? लफ़्ज़ रोते हैं, मेरे क़लम उठाते ही..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २९-११-२०१८.
सिर्फ एक शर्त पर, ग़मे-जहाँ को भूल जाऊँगा, नया ज़ख़्म दे मुझे, पुराना भरा है अभी-अभी..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २८-११-२०१८.
आँधीयाँ भी पियक्कड़ हो कर, बेकाबू हो गई…! तेरी अंगड़ाई से दिल की फ़िज़ाँ, बेकाबू हो गई…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २८-११-२०१८.
उनके अंदाज़, इशारों को, हम प्यार समझ बैठे…! हम-तबीयत मान कर, इसे इक़रार समझ बैठे…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २७-११-२०१८.
मुहब्बत की दाईं आंख, कब से फड़फड़ा रही है…! लगता है वो आयें या, उनकी कोई ख़ैर ख़बर…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २४-१ -२०१८.
वक़्त से पहले ही, बुझ जाती है शाम, उन ग़रीबों की, रोज़ी देने वाले अमीर, जब से ख़ुद ही ख़ुदा बन गए…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०१ डिसम्बर २०१६.