जाती है दृष्टि जहाँ तक बादल धुएँ के देखता हूँ Kavi Deepak Sharma 11/10/2012 दीपक शर्मा 1 Comment “जाती है दृष्टि जहाँ तक बादल धुएँ के देखता हूँ अर्चना के दीप से ही मन्दिर जलते देखता हूँ । देखता हूँ रात्रि से भी ज्यादा काली भोर को … [Continue Reading...]
कितने बच्चे सोते हैं रोज़ रखकर पेट में लातें अपनी Kavi Deepak Sharma 11/10/2012 दीपक शर्मा 1 Comment कितने बच्चे सोते हैं रोज़ रखकर पेट में लातें अपनी बना नहीं अभी कच्चा है कह देती है रोकर जननी । भोर हुए उठते हैं जब पाते हैं दो … [Continue Reading...]