Category: अरुण कान्त शुक्ला
असलियत सिर्फ, सामने देखने से, नहीं पता चलती, गिरेबां में कभी अपने भी, झांककर देखिये जनाब, सवाल दर सवाल कराते रहना, नहीं है, कोई खासियत, सवालों के कभी, हमारे …
इस दौर में जो चुप हैं, जाहिर है वो बच जायेंगे, पर, ये कोई अकेला दौर नहीं है, कि, वो हमेशा के लिये बचे रह पायेंगे, इस दौर के …
बिना खौफ के खौफ का साया जियादा ही डराता है बनिस्पत खौफ के, फाड़े गए कागजों की चिन्दियों से बास्केट भरी पड़ी है मुश्किल है लिखना मारे खौफ के, …
थकी हुई उदास शाम, रोज की तरह, फिर आई है मेरे साथ वक्त बिताने, मैं सोचता हूँ उसे कोई नया तोहफा दे दूं, मुस्कराने की कोई वजह दे दूं, …
साफ़ सुथरा कचरा और जीने के लिए मरने की लाचारी ख़ूबसूरत कपड़े, शानदार सहायक, साफ़ सुथरा कचरा, ये सब सफाई कर्मचारियों को मिल जाए तो.. गलतफहमी में न रहिये, …
श्रद्धांजली केदार को वे कभी मरते नहीं जिस क्षण से उनकी देह बंद कर देती है सांस लेना उसी क्षण से साँसे लेने लगती हैं उनकी कविता उसी क्षण …
‘ग़ज़ल’ को कौन रख सका है, पहरे में ‘अरुण’ पलक झपकते बदल लेते हैं रुख ‘रदीफ़-काफिये’ बया ने मुश्किलों से बनाया ‘घरौंदा’ अपना तूफां ने इक पल में उड़ा …
अनीष शुक्ला “चिंटू” की स्मृति में 5 जनवरी को शोक-मिलन ‘झरने’ ये ‘पहाड़’ से उठ्ठे हैं, ‘नीर’ इनका कभी सूखना नहीं सूखते नहीं जैसे समंदर के किनारे, पलकें …
तन्हां इस शहर में नहीं कोई शख्स तन्हाई आये भी तो कैसे आये उनके पास सुबह होती है जिनकी, शाम की रोटी की फ़िक्र के साथ , तन्हां इस …
छोड़ गए बृज कृष्ण, गोपी किस्से खेलें फ़ाग कहला भेजा मोहन ने, नहीं वन वहाँ, क्या होंगे पलाश? नदियों में जल नहीं, न तट पर तरुवर की छाया गोपियाँ …
जन्नत है कहाँ? जन्नत है कहाँ? जो, किसी को नसीब होगी, जमीं पर बसा सको तो, बसा लो यारो आप दूर कहाँ हुए, एकदम नज़रों के सामने हैं, रूबरू …
तैरना आना पहली शर्त है नाव भी मैं, खिवैय्या भी मैं लहरों से सीखा है मैंने तूफां-ओ-आंधी का पता लगाना, जो बहे लहरों के सहारे, डूबे हैं तैरना आना …
कोट के क़ाज में फूल लगाने से कोट सजता है फूल तो शाख पर ही सजता है, क्यों बो रहे हो राह में कांटे तुम्हें नहीं चलना पीढ़ियाँ पर …
नाव में पतवार नहीं हुजूर, आप जहां रहते हैं, दिल कहते हैं, उसे ठिकाना नहीं, शीशे का घर है संभलकर रहियेगा, हुजूर टूटेगा तो जुड़ेगा नहीं, यादों की दीवारे …
अमावस की रात को चाँद का गायब होना कोई बात नहीं जहरीली हवाओं की धुंध इतनी छाई पूनम की रात को भी चाँद गायब हो गया| दिल में सभी …
ज़िन्दगी का शायर हूँ मैं ज़िन्दगी का शायर हूँ, मौत से क्या मतलब मौत की मर्जी है, आज आये, कल आये| टूट रहे हैं, सारे फैलाए भरम ‘हाकिम’ के, …
लोग सुनकर क्यूं मुस्कराने हैं लगे और भी खबसूरत अंदाज हैं मरने के लेकिन इश्क में जीना ‘अरुण’ सुहाना है लगे क्यूं करें इश्क में मरने की बात इश्क …
मन का अंधियारा दूर करने मन का अंधियारा दूर करने जैसे ही जला लोगे तुम एक दीप अपने मन में पहुँच जायेंगी दीप पर्व की शुभकामनाएं तुम्हारी मुझ तक …
पत्थर के देवता अब जमाने को रास नहीं आते संगमरमर के गढ़े भगवान हैं अब पूजे जाते, ईश्वर भी अब मालिक हो गया है मुश्किल है उसका अब मिलना …
लोकतंत्र में संघर्ष और संघर्ष प्रत्येक संघर्ष का लक्ष्य विजय विजय का अर्थ दो वक्त की रोटी/ दो कपड़े /सर पर छत अभावहीन जीवन जीने की चाहत बनी रहेगी …
यह कैसा राजा है यह कैसा राजा है राजा है या चारण है खुद ही खुद के कसीदे गा रहा है| फ्रांस की रानी ने कहा था रोटी नहीं …
शरद की वो रात शरद की वो रात आज वापस ला दो आसमान से बरसती काली राख बस आज रुकवा दो बन चुकी है खीर घर में उसे कैसे …
अपना नसीब खुद बनाते हैं बड़ा ही बेदर्द सनम उनका निकला वो जां लुटा बैठे वो मैय्यत में भी न आया, इश्क अंधा होता है वहां तक तो ठीक …
इस बरसात में पहली बार बारिश हुई इस बरसात में पहली बार भीगी सहर देखी इस बरसात में, पहली बार सड़कें गीली देखीं इस बरसात में पहली बार कीचड़ …
तुम्हारी मन की बात पर प्रश्न सारे उठाकर रख दो ताक पर, जिसे जबाब देना है उसकी औकात नहीं जबाब देने की, पथ केवल एक ही शेष ठान लो …