Tag: प्रकृति पर कविता
गीत हजारों लिखे गये सब पड़े पुराने देखो आया फिर बसंत नव गीत सूनाने मन के अंदर जाने कैसी हूक उठी है कोई बताए कोयलिया क्यूँ कूक उठी है …
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का गर्मी तो अभी दूर है वर्षा ना आएगी फूलों की महक …
इस लहलाती हरियाली से , सजा है ग़ाँव मेरा….. सोंधी सी खुशबू , बिखेरे हुऐ है ग़ाँव मेरा… !! जहाँ सूरज भी रोज , नदियों में नहाता है……… आज …
वही छत वही बिस्तर..! वही अपने सारे हैं……!! चाँद भी वही तारे भी वही..! वही आसमाँ के नज़ारे हैं…!! बस नही तो वो “ज़िंदगी”..! जो “बचपन” मे जिया करते …
कोन से साँचो में तूं है बनाता , बनाता है ऐसा तराश-तराश के , कोई न बना सके तूं ऐसा बनाता , बनाता है उनमें जान डाल के! सितारों …
जाड़ों का मौसम … लो, फिर आ गया जाड़ों का मौसम , पहाड़ों ने ओढ़ ली चादर धूप की किरणें करने लगी अठखेली झरनों से चुपके से फिर देख …
नव उमंग, नव तरंग, नव उषा किरण छायी योवन रूप लेकर, अस्र्णोदय की बेला आई !! अश्वारोही हो दिनकर चला नभ मंडल में लालिमा छाई मुख मंडल पर दमकी …
कलयुग में अपराध का बढ़ा अब इतना प्रकोप आज फिर से काँप उठी देखो धरती माता की कोख !! समय समय पर प्रकृति देती रही कोई न कोई चोट …
मित्रो, यह कविता मैंने कुछ समय पहले लिखी थी जिसे आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ, समस्त कवि मित्रो से निवेदन है की अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे !! …
एक ओंकार हरे हर पीड़ा अहंकार बड़ा जहरीला कीड़ा मर्यादा पुरुषोत्तम जब बस राम है राम ही सब अहमों का धाम है अगर नियती से बंधे हैं सारे करम …
पके हुए बादलों पर वो नाचती लकीरे और भुनी हुई मिट्टी का महकना धीरे धीरे पानी को बोझ ढोते ढोते थककर थम जाना ठहाकों के कोलाहल से थर्राकर सहम …
सूरज निकला, हुआ सवेरा पंछियो ने भी लगाया बसेरा सुगन्धित पवन मंद मंद बहे मौसम ने ख़ुशी का रंग बिखेरा !! सिमट गया अब रात का पहरा छुप गया …
सावन की घटा लहरके बरसी आज अरसे के बाद !! सोंधी मिटटी की खुसबू महकी आज अरसे के बाद !! मेघ गाते मल्हार नभ में आज अरसे के बाद …
ऐ मन चल फिर गॉव की राह वो बच्चपन वसन्त की माह जब रोज सभा कस टोन मजा ठहाके लगाये जाते हैं बिन उपहार खुशी से युही जहा रोज …
झूमके ये घटा कभी बरसती न थी
कविता
नमामि गंगे! ( कविता) चलो ! आज एक क़सम उठायें , गंगा -पूजन की एक रस्म बनायें . नमामि गंगे !की जयकार कर , अपने दिन की शुरुआत करें …
तुमने सोचा है कभी ……. (कविता) हे मानव ! तुमने सोचा है कभी , तुम पूर्णत: हो नारी पर निर्भर . जन्म से मृत्यु तक तुम्हारे जीवन- सञ्चालन में …
कुछ अनसुलझे प्रश्न……… (कविता) जब मात्र-सतात्मक है समस्त सृष्टि , धरती है माता ,प्रकृति है माता , गंगा मईया व् समस्त नदियाँ , वोह भी हैं अपनी मातायें, गौ …
एक पत्र ईश्वर के नाम (कविता) हे प्रभु !कहो तुम्हारा क्या हाल है , तुम कहाँ हो ? हम हो रहे बेहाल हैं. कहो तुम्हारे बैकुंठ का मौसम है …
रह रहकर टूटता रब का कहर खंडहरों में तब्दील होते शहर सिहर उठता है बदन देख आतंक की लहर आघात से पहली उबरे नहीं तभी होता प्रहार ठहर ठहर …
संभल जाओं ऐ दुनियाँ वालों वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही ! रब करता आगाह हर पल प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !! लगा बारूद, पहाड़-पर्वत उड़ाए स्थल …
नभमंडल में विस्तृत सितारे मध्य चन्द्र की छटा अनुपम नीलवर्ण से सुसज्ज्ति उत्तमांश करते निश्छल क्रंदन का निष्पादन महज, रात चांदनी, मै और तुम !! सुदूर फैला सागर का …
******* तडपती रान सारे************* हे तडपती रान सारे, तडपती फुल बागा आगीसारख्या या उन्हाने जीवन उजाडला सारा //धृ// भट्टी तापिली तापिली वर कोऱ्या आभाळाची, सर्व प्राण्यांपक्ष्यांना लागली चाहूल प्राणाची …
मान लेना वसंत आ गया बागो में जब बहार आने लगे कोयल अपना गीत सुनाने लगे कलियों में निखार छाने लगे भँवरे जब उन पर मंडराने लगे मान लेना …