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वक़्त से पहले ही, बुझ जाती है शाम, उन ग़रीबों की, रोज़ी देने वाले अमीर, जब से ख़ुद ही ख़ुदा बन गए…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०१ डिसम्बर २०१६.
बिलकुल सही है, मुझ से इश्क न फरमाने का फैसला तेरा, मेरी बरबादी के लिए, तो बस काफ़ी है तेरी बददुआ…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः १२ अगस्त २०१६.
हर मर्ज़ की, एक ही दवा होती है, पीने वालों के पास, शायद, घुल जाती होगी सहज से, घुट-घुट के मरने की आस..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २९ जुलाई …
प्यार करने की भी, कोई वजह होती है क्या ? प्यार तो अमर, रूह का अटूट हिस्सा होता है…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः १९ नवम्बर २०१६.
ज़िंदगी को ही, तय करने दे उसे क्या चाहिए, फिर, तजुर्बा भी तो, काम आना चाहिए किसी दिन…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः १९ नवम्बर २०१६.
रूह और तुम, दोनों अक्स हो मेरे, बता किस से, जुदा होने पर मर जाऊँ…! अक्स = प्रतिबिम्ब; मार्कण्ड दवे । दिनांकः १९ नवम्बर २०१६.
कह कर गया था हक़ीम, इस रोग का इलाज नहीं, पर, तेरा हाथ चुम लिया और देख ठीक हो गया…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः १८ नवम्बर २०१६.
छलावा है बारबार, चोला बदलना उसका, दुःख ही तो आता है, पहन के चोला सुख का…! छलावा = प्रपंचः चोला = पहनावा; मार्कण्ड दवे । दिनांकः १४ जून २०१६.
सिरफिरे जज़बातों को, सिर पर बिठा कर क्या मिला ? ना मिला प्यार , न यार, न रिश्ता, ना ज़रा सा क़रार…! सिरफिरे = सनकी; मार्कण्ड दवे । दिनांकः …
तूने कैसी नज़र से देखा, आकर के मेरे ख़्वाब में? तेरे मुताल्लिक, सारे ख़्वाब, जल गए मेरे ख़्वाब में…! मुताल्लिक = संबंधित; मार्कण्ड दवे । दिनांकः १६ नवम्बर २०१६.
चांदनी के बदन से, रौशनी चुरा के, ओढ़ लेता हूँ, जब तुम्हारी याद, चांदनी रातों में, सताती है मुझे..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २८ जुलाई २०१६.
सही फ़ैसले के लिए, मन को थोड़ा वक़्त दिया कर, जल्दबाज़ी में हो सकता है, ग़लत तू या, तेरा मन..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २३ जुलाई २०१६.
शायद, अपनी काबिलियत पर, अब उसे भरोसा नहीं रहा, अहसास-जज़बात की रगों को, काटने पर तूला है दिल..! काबिलियत = हुनर; अहसास = अनुभव; जज़बात = मनोभाव; रग = …
बुरे वक़्त में, साथ दिया था जिन-जिन का, हर वक़्त मैंने, कह कर, आज धतकार दिया, सब ने, `हम तुम्हें जानते नहीं..!` धतकारना = अपमानित करना; मार्कण्ड दवे । …
आते-जाते दिन-रात से चंद लम्हें चुरा कर, जिंदा यादों को आज फिर दफ़ना दिया मैंने…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २० सप्टेम्बर २०१६.
कभी हम से भी तो,पंगा लिया कर ज़ालिम, बड़ा लुत्फ़ होता है, रुठे को मनाने में…! पंगा = तकरार; लुत्फ़ = आनंद; मार्कण्ड दवे । दिनांकः २० अगस्त २०१६.
तहज़ीब की आसान राहों में, काँटे बिखेर के चल दिए, भरी महफ़िल में इज्ज़्त को तार-तार कर के चल दिए..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २० ओक्टॉबर २०१६.
फ़ना है जवानी, कुँवारी आँख रख कर, बन जा सुहागिन, हम से आँख मिला कर…! फ़ना = बरबाद; मार्कण्ड दवे । दिनांकः १२ ओक्टॉबर २०१६.
आसमाँ भी गिर गया, ख़ुद की नज़रों से नीचे, जब भी देखा, इन्सान को तिल-तिल के मरते । नज़रों से गिरना = बहुत शर्मिंदा होना; तिल-तिल के = घुट-घुट …
जलनेवाले हँसने लगे हैं, इन बेस्वाद ज़ख़्मों पर, हो सके तो फिर से तू आजा, नमक छिड़कने ज़ख़्मों पर…! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २० अगस्त २०१६.
आगाह करना चाहिए, मुसीबतों से पहले ही, हम तो समझे थे, आसाँ होगी डगर प्यार की..! मार्कण्ड दवे । दिनांकः २० अगस्त २०१६.
उसकी बातों से लगता है, बहुत थक चुका है वो, अय इंतज़ार, तुझे बेसब्र होने कि ज़रुरत न थीं..! बेसब्र = धैर्यहीन; मार्कण्ड दवे । दिनांकः २० ओक्टॉबर २०१६.
बेजान चीज़ों से, बातें करने का दिल करता है, कहते थे जिसे जान वो, अनजान बन गए आजकल..! बेजान = अचेतन; अनजान = अपरिचित; मार्कण्ड दवे । दिनांकः ०२ …
इतरा मत इतना ख़ुद से, बाद मेरे क्या होगा, ज़मीनो – आसमाँ भी, बाद तेरे ये जहाँ होगा…! इतराना = घमंड करना; मार्कण्ड दवे । दिनांकः २० अगस्त २०१६.
बदनाम हुई मुहब्बत, पड़ोस के दिलों में बराबर , बरबाद होगा पाक, इक न इक दिन बेइज़्ज़त हो कर..! पाक = पाकिस्तान; मार्कण्ड दवे । दिनांकः २० ओक्टॉबर २०१६.