Tag: कविता संग्रह
-: कुछ यादें बीते साल की :- कुछ यादें बीते साल की, नये साल में बहुत याद आयेगी कुछ यादें माना आँखें करेंगी नाम कुछ यादें चहरे पर मुस्कान …
कुछ साल और निकले में पढता रहा सब मुझे पढ़ाते रहे आ गया वो दिन जिस दिन होना था माँ से दूर सब छोड़ गये अकेले कोई नही था …
POEM NO . 230 ———— मृत काया का रोदन ———— मृत काया के लिए हुआ आज फिर करुणा मय रोदन | छोटे छोटे बच्चों की आशाओं का हुआ शोषण …
हम भी तेरे इश्क में पागल हे भाई तेरे इश्क के सामने मेरा इश्क फिखा हे भाई तू मेरी जान ये बताऊ केसे मेरे भाई आज कुछ लम्हे याद …
POEM NO. 12 —————- शुभरात्रि —————— Sanate ki aath me soya koi saksh mand mand muskura raha he koi saksh nind aati nhi fir bhi dubak k so rahe …
POEM NO. 11 ————– आज उदास हु में ——————— आज मन्न उदास हे पता नही क्यों ये मन्न उदास हे क्या में दोसी हु जो में उनकी केयर करता …
-: कुछ लम्हें –कुछ पल :- उसने धीरे से बेड से उठते हुए फुसफुसाकर कहा मेरे कान में क्या तुमको वो लम्हा याद है, जब हम मिले थे पहली …
मै अबला नादान नहीं हूँ दबी हुई पहचान नहीं हूँ मै स्वाभिमान से जीती हूँ रखती अंदर ख़ुद्दारी हूँ मै आधुनिक नारी हूँ पुरुष प्रधान जगत में मैंने अपना …
* शब्द का शब्दार्थ * शब्द का शब्दार्थ भिन्न है या मानसिकता का है बिसात आइए आपको सुनाता हूँ जीवन का एक बात, मित्र का मेहमान ने पूछा क्या …
* पैसा * पैसा से प्यार इजहार इकरार आज बना यह मुख्य व्यापार, पैसा से इज्जत पैसा से पहुंच कलजुग में यह अस्त्र अचूक, पैसा हर रास्ते का साधन …
*अंधियारा* हमें अंधियारा पसंद है जहाँ शान्ति का संगम है, बहुत लोग हैं इसे बुरा मानते बुराई का प्रतिक हैं इसे जानते , सारे प्रकाश का यह केंद्र है …
*यह अपना लोकतंत्र है मेरी जान* यह अपना लोकतंत्र है मेरी जान यहाँ घोड़ा गदहा एक समान भाड़ ढोए या रेस में दौड़ें किसी का भी नहीं रहेगी अलग …
राहों के पत्थर देखे इतने के अब नहीं संभल पाता हूँ अपने पीछे चलते चलते खुद से दूर निकल जाता हूँ अब तो कोई रोक लो आके मैं लीक …
मैं शरीफ था इसलिए चुप रहा लोगों ने समझा मुझे जवाब नहीं आता जब से शराफत निकाल के फेंकी मैंने अब लोगों को सवाल नहीं आता कुछ सोच कर …
अब मिलता नहीं, जो आंसू छुपा के रखा था कहीं ना ही वो जिंदगी जो तन्हा गुज़ारी है ना ही वो बातें जो तुम करती थी कभी ना ही …
माँ मुझे बच्चा रहना है बड़ी-बड़ी बातें हमें नहीं करना सहिष्णुता-असहिष्णुता का पाठ हमें नहीं पढ़ना इमाईनुल , मोहन, रहीम संग खेलना है माँ मुझे बच्चा रहना है । …
किस तूफ़ान को देख डरा है तू ! बिना खिवाए जो कस्ती तेरी किनारे पर लगा देगा। तू किस खुदा को बन्दे भूला है ! बिन बताये जो …
-: कौन यहाँ ?: :- जख्मों को हमारे, मरहम लगता, कौन यहाँ ? जीने की लाठी जो टूट चुकी, जोड़ता, कौन यहाँ ? गुल खिला,गुलिस्ताँ इक बनाया था हमने, …
एक दूजे को मर मिटने को देखो कैसे बीज वो रहा। पल पल चढ़ते यौवन में हृदय कैसे गंबीर हो रहा। कैसे देखो लौ दीपक की ऊंचाई तक चढ़ने …
तू खुद की खोज में निकल। तू किसलिये हताश है, तू चल , तेरे वजूद की समय को भी तलाश है। जो तुझसे लिपटीं बेड़ियाँ, समझ ना इनको वस्त्र तू …
जब कभी मैं अकेलापन महसूस करता हूँ, बस पुराने दिनों को याद किया करता हूँ, याद किया करता हूँ उन दिनों को, जो मेरी जिन्दगी के हसीन दिन थे, …
“शब्दो का जाल बिछाये बैठता हूँ , हिन्दी साहित्य के समन्दर में, आखिर इन रचनाओँ से ही तो अपना घर चलता है…..” शीतलेश थुल।
“जो भी दिल के करीब लगा, छीन ले गया तू उसे मुझसे , तुझसे मेरी नफरत बेवज़ह तो नहीं….” शीतलेश थुल !!
झूठे आश्वाशन दिलाकर, मांगते हो तुम वोट, मिल जाये जब कुर्सी तुमको, भरने लगते हो तुम नोट, देश-सेवा की शपथ खाकर, मन में रखते हो तुम खोट, जिस थाली …