Author: शेखर वत्स
बेटी जिन्हें नापसंद है, वे नहीं भरोसेमंद हैं बेटी मिलती किस्मत से, देखो न इसे नफ़रत से ये बेटी है बेटा भी, बेटा है सिर्फ बेटा ही ये दो …
मैं बेज़ुबां हूँ, लेकिन बेजान तो नहीं हूँ एहसास हो न जिसमें, वो सामान तो नहीं हूँ माना कि नस्ल से मैं इंसान तो नहीं हूँ इंसान की तरह …
गीत हजारों लिखे गये सब पड़े पुराने देखो आया फिर बसंत नव गीत सूनाने मन के अंदर जाने कैसी हूक उठी है कोई बताए कोयलिया क्यूँ कूक उठी है …
जब भी खुली ऑंखें सभी सोते मिले खुद को अकेला पा के मैं भी सो गया काटने को दौड़ती थी शाम जब इक फुहारा सा उठा और भिगो गया …