Author: akhilesh audichya
रात की कंबल बेआवाज दीवारें नींद तन्हा कोई रूठ गया है किसी से और कोई तार-तार कंबल उधेड़ रहा है बुन रहा है…
लिखता कहाँ हूँ सिगरेट की मानिन्द सुलगा जिन्दगी को धुँआ जज्ब़ कर लेता हूँ राख़ झाड़ देता हूँ पन्नों पे…
बारिश ने मचलकर जब बाल झटके मैंने महसूस की उसकी फुहार अपने बिस्तर तक छींटों की छमक ने जगा दिया कुछ अधसोये ख्वाबों को कितना शोर मचाते हैं जब …