
मैं अपने बारे यहाँ पर बता रहा हूँ | लेकिन सबसे पहले यह बताना चाहूंगा की यह वेबसाइट सभी के लिए है और जो भी अपनी काव्य रचनाये हिन्दी में प्रकाशित करना चाहता है उसका स्वागत है |
मैं पेशे से एक इंजीनियर हूँ और मैंने आई. आई. टी. से सन 1997 में डिग्री प्राप्त की और अभी केंद्र सरकार के निदेशक के पद पर कार्य कर रहा हूँ |
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सर नमस्कार!
हिन्दी हमारी मातृ भाषा होने के साथ ही हमसे हमारे अन्तस् को जोड़ने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। आप जैसे व्यक्तित्व हृदय की गहराइयों से धन्यवाद के पात्र हैं जो किसी अन्य व्यवसाय में होकर भी हिंदी की गिरती हुई शाख को बचाने और इसके साहित्यिक पक्ष को संजोने संवारने में लगे हुए हैं। आप का यह अनूठा प्रयास इस तकनीकी युग में भी इसका सटीक प्रयोग है जो पूर्णतया समसामयिक है।
आप के इस प्रयास और इन विचारों को नमन!
-अरुण कुमार तिवारी
आदरणीय अरुण कुमार तिवारी जी !
आप हिंदी साहित्य को उंचाई प्रदान कराने का जो वीणा लिया है उसे धीर बनकर धर्यपूर्वक समाज में ज्योति जगाये रखने की आवश्यकता है कहा गया है -कुछ लोग ही लाखों में ऐसे होते हैं ,जिन्हें देखने को आइना अधीर होते हैं |
आदरणीय अरुण कुमार तिवारी जी ka prayaas atyant sarahneey hai.
Namskar , wishing you a very happy day ahead. Sir, i am also used to write poems and articals in hindi . And want to publish on your website .but most of the times i had failed to register on your site. Please send me exact process of registration for my convenience .
आदरणीय अरुण जी,
नमस्कार,
आपने हिंदी भाषा के विकास के लिए जो कार्य कर रहे हैं वह भी अपने खर्चे पर,बहुत ही सराहनीय है । हम सभी को आपने मंच प्रदान किया है,हम आपके आभारी है।
धन्यवाद
मधु तिवारी
आदरणीय अरुण जी,
सादर प्रणाम
आपने अपने बारे में जानाकरी साझा कर हमे अपनत्व का अहसास कराया ह्रदय को सुखद अनुभूति प्राप्त हुई !
आपके द्वारा संचालित हिंदी साहित्य मंच के लिए हम आपके हृदयतल से आभारी है ! आपने जिस निस्वार्थ भाव से साहित्य के प्रति अपना कर्तव्य मानकर इस कार्यन्वयन को दिशा प्रदान की है वो अप्रशंशनीय है! आपकी ह्रदयविशालता आपके इस अक्षम कार्य से साफ़ झलकती है ! आपके निश्छल प्रेम और साहित्य के प्रति समर्पण के भाव इस बात का जीवंत उदहारण है की आज भी समाज और प्रशाशन में आप जैसे भद्रजनो का वास है जिनके लिए कर्मनिष्ठा और देश व् भाषा प्रेम सर्वोपरि है !
सेवा भाव यदि ह्रदय में हो तो उसे किसी संबल कि आवश्यकता नहीं होती ! किसी भी माध्यम से देश और जन सेवा की जा सकती है ! इसका उदहारण आप हमारे समक्ष है ! धन्य है आप और आपके भाव हम आपके इस अमूल्य और असाधारण कार्य के लिये बारम्बार आभार प्रकट करते है
आशा है आपका प्रयास हिंदी साहित्य के लिये नए आयाम के साथ प्राण वायु का कार्य कर उसे बुलंदियों तक पहुंचायेगा ! और ईश्वर से आपकी चिर आयु कि कामना करते है !
धन्यवाद
डी के निवातिया
क्या में अपनी रचनाएँ भेज सकती हूँ ,कृपया बतायें कैसे
मंजुल भटनागर
बिलकुल ज़रूर भेजिए….होम साइट पे जाएँ….”महत्वपूर्ण तथ्य” को क्लिक करें उसमें “यहां रचनाएं कैसे लिखें” को क्लिक करें और उस अनुसार अपनी रचनाएं भेजिए….