मृत्यु के पदचिन्ह (कविता)
कैसी निर्वरता छाई है ?
ना कोई आहटें ,
ना किसी की परछाई है.
कल ही तो यह स्थान था,
जन सैलाब से भरा हुआ,
प्रकृति से हरा -भरा ,
विभिन्न लोगों से बसा हुआ.
आज है हर तरफ सन्नाटा,
हर आँगन प्रतीत होता है यूँ श्मशान सा,
अपनी बदनसीबी को रोता ,अधुरा सा.
आँगन तो है अब भी ,
मगर बच्चे नहीं,
वृक्षों पर घोंसले तो है ,
मगर उनमें पंछी नहीं,
वृक्ष भी कहाँ रह गए! ,
जले हुए ठूंठ है यह तो.
पत्ते और टहनियों ने ,
कब का साथ छोड़ दिया तो!
तो !! कहाँ खो गए ये सब?,
किसने किया यह सर्वनाश ?
कौन है अपराधी ?
ह्रदय में उठे तमाम सवालात ,
और चुभ गए असंख्य कांटे .
जब मैने देखी कुछ काली ,भयावह परछाईयाँ .
यकीनन यह मृत्यु के पदचिन्ह इन्हीं के थे.
Very nice.
बहुत खूबसूरत……..यथोचित अवलोकन ……………..!!
Nice …………..
आपकी अभिव्यक्ति काफी सराहनीय है.. बहुत अच्छी प्रस्तुति…
bahut khoobsoorat……………
bhut hi marmik abhivyakti hai……….
Onika mujhe is rachnaa me ek samasya dikhi. Shrug me aapne kaha koi parchaaiyaan nahi hai aur bad me bhayaavah parchaaiyaan dikhti hain. Ye ajeeb saa lagtaa hai. Pauli parchaai ke sthan par kisi or shabd kaa chayan karo. Doosraa bhayavay parchaaiyaan kiski yadi ingit kar sake to rachnaa bahut utkrasht ho sakti hai.
Bahu khoob