तस्वीरें जो सामने आती गई,
जीवन को एक नया मोड़ देती गयी.
कुछ रूठी ,कुछ प्यारी सी गलियो में
खोती चली गयी.
हर तस्वीर के रुख को देखा ,
कुछ को समझा ,
कुछ को समझते चली गई.
कुछ तस्वीरे ठहर सी गयी ,
कुछ काँच की तरह टूटकर ,
बिखरती चली गयी..
अंजली यादव
Kgmu Lucknow
सुंदर भावों से युक्त रचना.
मेरी रचनाएँ “भिखारी” और “पूनम का चाँद” भी नजर करें और अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया दें.
Thanku vijay sir
Very Nice ………………goods thought………..!!
Thanku sir
Very nice
Thanku sir
very nice anjali…………………
Thanku madhu mam
Very nice…
Thanks a lot mam
यही तो है ज़िन्दगी….कुछ उलझी…कुछ सुलझी सी पहेलिओं की…..बहुत खूब…..
Thaks
Zindgi isi kaa naam hai………..ati sundar Anjali ….
Thanku sir .I was waiting your coment .