Homeजॉन एलियाहर बार मेरे सामने आती रही हो तुम हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम विनय कुमार जॉन एलिया 26/03/2012 No Comments हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम, हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं, तुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुम, मैं कौन हूँ ये ख़ुद भी नहीं जानता हूँ मैं, तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो आज़ाब में, और इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं, Tweet Pin It Related Posts चार सू मेहरबाँ है चौराहा अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे यह गम क्या दिल की आदत है? नहीं तो About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply