शीर्षक-क्या तुम होगी वहां
क्या तुम होगी वहां
जहाँ मैं हूँ तुम हो और हो प्यार का जहाँ
क्या तुम होगी वहां
जहाँ ना हो कोई हदे
जहाँ मिटा ना सके दूरियां सरहदे
बस मैं रहूँ , तुम रहो और जले
चिरागे-मोहब्बत
क्या तुम होगी वहां
मेरे कमरे के दर्पण के आगे खुद को सजाती हुई
इंतज़ार में उन रास्तो पे
जहाँ से मैं आऊं और आये मेरे प्यार का जहाँ
क्या तुम होगी वहां
जब दरवाजे की कुंडिया मौत खटखटाये
तेरी गोद हो मेरा सिरहाना
और टूट जाए मेरी साँसे
क्या तुम होगी वहां
क्या तुम होगी वहां—–अभिषेक राजहंस
bhauk kr diya apki rachana ne abhishek ji…………….
Thanks mam
Bahut khub………………………
prem ki gehrai se tarashi hui sundar rachna
bahut khoob………….