ये दुनिया का कैसा दस्तूर..
पास रह कर भी सब इतने दूर..
वो जूठी मुस्कुराहटें …थपथपाती मानो पीठ को अभिमान से…
पद, पहोच का अजीब सा ताना बाना,
बराबर बैठे होने पर भी अनुभव के आगे शीश झुकाना…
घमंड का प्रतिशोद में बदल जाना..
मार्ग से तुमको भटकाना ईर्ष्या कहूँ या कहूँ उम्र का अजीब अफ़साना…
{शायरी}
“मत खेलो मेरे आत्मसम्मान से …ये ग़ालिब !
तुम्हे अभी अंदाज़ा नही है,
क्रोध पर काबू पाने का हुनर ही समझ कुछ सीख लो मुझसे …” 🙂
आज तुम शक्ति दिखला सकते हो, दबा सकते हो,
क्योकि पद श्रेष्ठ है तुम्हारा….
मौन रह गया आज यही सोचकर वरना निश्चित था तुम्हे अपने अल्फाजो पर पछताना….
इस दुनिया के अजीब दस्तूर का भी अंत हो जायेगा…
क्रोध से जन्मेगा पलभर में भस्म हो जायेगा…,
मतकर घमंड खुद पर इतना, इक दिन ये भी चूर चूर हो जायेगा…
चूर चूर हो जायेगा…चूर चूर हो जायेगा…
Bahut sunder……..