मन दरियाव में डूबा समंद मोती खोज
भटका जो मन आपका वह है जीवन बोझ।
मॉ बाप की सेवा जो करे सो न पछताय
जो सेवा से दूर है पहले ही मर जाय।
दादा दादी स्वर्ग के खुले हुये दरवार
चार धाम भटक रहे यही तो अमृत धार।
नैनन से जब नीर वहे बहुत गये घबराय
मॉ की ऑचल छोड़ के कहीं नहीं सुख पाय।
दुर्जन तो दुर्जन होत होत कभी ना पाक
लोभ भला करता नहीं पाप न करता माफ।
बी पी शर्मा बिन्दु
Ati sundar Bindu ji…..
Thank you shishir jee …..
बिंदु जी , भाव बहुत खूबसूरत है रचनात्मकता भी उम्दा ……………मगर दोहे के पैमाने पर खरी नहीं उतरती, दोहे के कुछ अपने नियम है …उन पर गौर करेंगे तो आपको सप्ष्टता आ जायेगी !
Aap ki baton se main puri tarah sahamat hun………. jaldi badzi ki wajah ………
Bahut sundar….
Thank you very much anu jee……
Bahut badhiya…Haan nivatiyaji ne Sahi kaha hai….dohe nahin bante yeh….
Babu jee main isspe Shaun de raha Hun jara abeer khush ke done bhi padhen thanks
बहुत खूबसूरत………………….
Manoj jee very very thanks