दो अजनबी एक रास्ते पर टकराए थे
थे एक दूसरे से अनजान वो
एक दूसरे की झलक दिल मे बसाये थे
चले थे अपनी ही धुन में वो
क्या पता था मंजिल दोनों को एक ही मोड़ पर लायेगी
कुछ इशारा था उसका ये दोनों को समझायेगी
चलते चलते बस मुस्कराये
मुड़ गए अपनी अपनी राहों पर
बिना सोचे क्या पता ये रास्ते फिर कब टकरायेन्गे
फिर कब हम दोनों को एक दूसरे के करीब लायेंगें
वक़्त का इशारा कुछ ऐसा हुआ
अजनबी बार बार टकराने लगे
एक दुजे को देखकर मुस्कुराने लगे
अब अजनबी उन्ही राहों पर बार बार आते थे
एक दूसरे के इंतजार में घंटों बिताते थे
इतीफाको का सिलसिला शुरू हुआ
मुलाकातो मे तब्दिल हुआ
मिलते मिलते दो अजनबी इतने करीब आये थे
कब वो अजनबी से अच्छे दोस्त बने
ये वो खुद भी ना जान पाये थे
बरखा रानी
ati sundar bhaavaavyakti ……..I enjoy flow of your work.
बेहद खूबसूरत……….बरखा जी…जब अजनबियों की बात हो रही तो “फिर कब हम दोनों को एक दूसरे के करीब लायेंगें” इसमें “हम” की जगह “उन दोनों” कर देंगी तो ठीक रहेगा…क्या ख्याल है आपका….
बहुत ही खूबसूरत…………….
ati sunder rachna….