गिनती की ही मिली हैं हमें धड़कनें
न इतरा , न इनका तू एतबार कर
कहीं रुक गयीं जो ,एक बार तो
क्या रख सकेगा ,कुछ सम्भाल कर
धडकती हैं जब तक , सीने में ये
इनके धड़कने का तू एहतराम कर
हर पल कुछ कुछ बाताती हैं धड़कनें
मीठे गीत भी कभी सुनाती हैं धड़कनें
सौगात में हमें जैसे मिली हैं धड़कनें
जीवनरस ,जीवन की औक़ात हैं धड़कनें
कभी आतुर किसी पद चाप से हो जाती हैं धड़कनें
भय की अकुलाहट से कभी थम जाती हैं धड़कनें
बसी हैं जब तक साँस में चलती रहती हैं धड़कनें
रुक जायें पल भर को तो क़यामत ढाती हैं धड़कनें
सौग़ात में मिली हैं ,हमें ये धड़कनें
हर पल नया राग सुनाती हैं धड़कनें
शुरू से आख़िर तक साथ निभाती हैं धड़कनें
हो सुख यॉ दुख बस चलती जाती हैं धड़कनें
अच्छा अब्ज़र्वेशन किरण जी.काफ़ी समय बाद आपकी रचना पढ़ने को मिली.
बहुत २ धन्यवाद शिशिर जी , कुछ व्यस्त होने के कारण लिख नहीं पाई
Bahut sundar rachna Kiran ji….
अनु जी बहुत २धन्यवाद
Bahut din Baad darshan hue…..Laajwaab bhaav piroye hain……
बब्बू जी बहुत २ धन्यवाद , कुछ कारणों से मैं कुछ लिख नहीं पाई यॉ समय ही नहीं मिला
अति सुन्दर।
मात्र मिलाने से कृति में और निखार आ सकेगा।
जैसे अंतिम चार लाईन लीजिये भाव वही रखते हुए
सौग़ात में मिली हैं ,हमें ये धड़कनें
हर पल नया राग सुनाती हैं धड़कनें
पर हर समय साथ निभाती है धड़कनें
सुख दुख का रिश्ता सजाती है धड़कनें
धन्यवाद भूपेन्द्र जी ,,,,,,,
bhut sundar bhav hai …………kiran ji……….
बहुत २ धन्यवाद मधु जी
Bahut sunder rachana Kiran ji.
मीना जी बहुत२ धन्यवाद ,,,,,
बहुत सुन्दर रचना…….. किरण जी……….
काजल जी कविता पसंद आई , इसके लिए धन्यवाद
सुन्दर रचनात्मकता …………………अति सुंदर किरण जी !
निवातियॉ जी बहुत २ धन्यवाद