सोने की चिड़ियाँ
चाहे कितने भी बाधा
खड़ी रहे, कांटे की दिवार
लोहे से तैयार सिकंजा से
मेरी देह पर तुंहर अधिकार है
इस पर ढक जमा सकते हो
पर मेरी मन और चेतना का
क्या होगा ?
इनको क्या कर सकोगे अपने गुलाम
इनकी अभिलाषा बहुत ऊँची है
सभी का सीमा है
पर कभी तो सीमा पर होगा ही
मई भी नीले आसमान में
ऊड़ सकता हूँ
पंख को फैलाकर
ठीक उस सोने चिड़ियाँ जैसी
जो राजा की सोने की पिंजड़े से
भाग खड़ा होकर
नीले आसमान में
नाचती है गाती है
सभी को सुख -शांति की
संदेश देती है
सोने की पिंजड़े
लोहे का सिकंजा
सभी बेकार हो जाएगा
केवल रहेगा तो
अनंत नीला आसमान
और ढेर सारा प्यार
———– चंद्र मोहन किस्कु
very nice
plz read ये उत्सव है होली का
2) मिट्टी………!
bhut bdiya ….chandramohan ji……..
Nice expression
Ati sundar ……………….!!
Ati sunder………