मन मेरा इत उत भागे रे….
उड़ जाए बदली बन कभी…
कभी चाँद सा झांके रे….
जंगल में सबने क़ानून बनाया…
दुश्मन भी जिसने दोस्त बनाया…
बिल्ली मौसी के घर शादी…
चूहा दूल्हा बन नाचे रे….
मन मेरा इत उत भागे रे….
भालू भी दावत में आया….
आलू और टमाटर खाया…
पेट उस का भर न पाया….
फिर भी थैंक्यू बोला रे……
मन मेरा इत उत भागे रे….
शेर दहाड़ न मारे अब…
पेट में उसके पडते बल…
शेरनी बनाये खाना अब…
और लगाए लिपस्टिक रे…..
मन मेरा इत उत भागे रे….
लोमड़ी चाची नाक सिकोड़ती…
घूमें इधर उधर मटकती…
या पढ़ती फिर बैठ पोथी…
बातों में उसकी कोई न आये रे…..
मन मेरा इत उत भागे रे….
बन्दर मियाँ खी खी करते…
खजूर के पेड़ पे पड़े हैं लटके…
बच्चों को अब वो खूब हंसाये…
केले उनके नहीं खाये रे…..
मन मेरा इत उत भागे रे….
गिलहरी फुदके इधर उधर..
तोता मैना बैठे जिधर…
हाथी पे बैठ कुत्ता जाए…
‘चन्दर’ मन सब भाये रे…..
मन मेरा इत उत भागे रे….
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/सी. एम्. शर्मा (बब्बू)
Lovely child poem Babbu ji ……………
बहुत बहुत आभार आपका……Madhukarji….
Sherni banaye khana ab………
Ki jahah…. Sher banaye khana ab.. Sherni lipstick lagaye rey…..
Hota to or maza aata……
Ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha
Bahut hi mazedar poem……
Kaajalji….बहुत बहुत आभार आपका……शेर की हेकड़ी अचानक नहीं जा सकती… समय लगेगा…इंसान की तरह दबने में… hahahahahahaha………
Sharma ji .आपकी कविता ने चम्पक पत्रिका के चम्पक वन को हूबहू साकार कर दिया । अति सुन्दर …………,
Meenaji…..बचपन में पढ़ते थे…आज कल आती नहीं आती ‘चम्पक’…पता नहीं….तहदिल आभार आपको पसंद आयी….
sundar bal kvita sharma sir……………………..
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बहुत बहुत आभार आपका……Madhuji….
Bahut khubusrat BABBU Ji. …………….. BAAL MAN ko sukhad anubhuti pradna karti khubsurat rachna….
बहुत बहुत आभार आपका……Nivatiyaji….
bahut badiya sir baache bana diya aap ne….hahahahaha
बहुत बहुत आभार आपका……Maniji….